For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सपने !!!!!!!

सुहाने से

सँजोये थे जो मन के

भीतर आवरणो की परतों मे

सँजोया और सींचा था

नव पल्लव देख

मन झूम उठा था

खुशी के अंकुर भी

फूट पड़े थे

उड़ान की आकांक्षा मे

पंखों को कुछ फड़फड़ा कर

ज्यों हुआ उड़ने को आतुर !!!!

आह !!

पंख कतर दिये किसने ?

धराशायी हुआ

स्वर भी बाधित हुआ

जख्म लगे

अभिलाषी मन

परित्यक्त सा

कुलबुला उठा

अश्रुओं ने साथ छोड़ा

धैर्य ने भी  हाथ छोड़ा

वो अकुलाहट !!!!

बरस उठी बरबस

कुछ शांत हुआ अब जाकर मन

सपने !!!!!

कुछ भी न थे शेष

न अभिलाषा थी

दुबारा फिर सँजोने की

श्रेयस्कर था त्यागना ही

पुनः जीवन धारा मे लौट कर

अविरल बहना

पथ पर आगे बढ़ना

सदा ही निरंतर ।.............................. 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

 

Views: 1145

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by annapurna bajpai on September 27, 2013 at 9:36pm

आदरणीय अभिनव जी आपका आभार । 

Comment by annapurna bajpai on September 27, 2013 at 9:35pm

आदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on September 27, 2013 at 9:33pm

आदरणीय रविकर जी आपका हार्दिक आभार अपना स्नेह बनाए रखें । 

Comment by hemant sharma on September 27, 2013 at 9:21pm

अति सुन्दर रचना बधाई आदरणीया अन्नपुर्णा जी......

 

Comment by Saarthi Baidyanath on September 27, 2013 at 8:11pm

:

अभिलाषी मन

परित्यक्त सा

कुलबुला उठा..... बेहद सुलझे हुए भाव ..! अच्छी रचना :)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 27, 2013 at 7:13pm

आदरणीय सुन्दर रचना , सुन्दर अभिव्यक्ति !! जीवन के उतार चढाव के बीच एक साहसिक समझौता !! बहुत बधाई !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 27, 2013 at 6:49pm

अनमोल सपनों का बेमोल सा ढहता जाना .. और फिर स्वप्न विहीनता को ही बेबस हो स्वीकार कर लेना.. जीवन धारा में ही जीना बिना स्वप्नों के ... उफ्फ ये धज्जी धज्जी उधड़े परों का दर्द. फिर भी मुस्कराहट के मुखौटे सिर्फ अपनों के लिए 

हृदय सपर्श करती, संवेदना जो झंकृत करती अभिव्यक्ति..

हार्दिक बधाई 

Comment by ram shiromani pathak on September 27, 2013 at 5:08pm

सपने !!!!!!!

सुहाने से

सँजोये थे जो मन के

भीतर आवरणो की परतों मे

सँजोया और सींचा था

नव पल्लव देख

मन झूम उठा था

खुशी के अंकुर भी

फूट पड़े थे

उड़ान की आकांक्षा मे

पंखों को कुछ फड़फड़ा कर

ज्यों हुआ उड़ने को आतुर !!!!

आह !!///////////////////////////////////////वाह बहुत ही अनुपम पंक्तियाँ   

आदरणीया अन्नपूर्णा जी  हार्दिक  बधाई आपको //सादर

Comment by Abhinav Arun on September 27, 2013 at 4:28pm

पुनः जीवन धारा मे लौट कर

अविरल बहना

पथ पर आगे बढ़ना

सदा ही निरंतर ।.............................. आ. अन्नपूर्णा जी साधुवाद . .. अक्सर विपरीत परिस्थितियों में कठिन होता है पर सार्थक देती सन्देश परक रचना ... हार्दिक शुभकामनायें इस सृजन और प्रस्तुति पर

Comment by Meena Pathak on September 27, 2013 at 2:50pm
कुछ भी न थे शेष
न अभिलाषा थी
दुबारा फिर सँजोने की
श्रेयस्कर था त्यागना ही
पुनः जीवन धारा मे लौट कर
अविरल बहना
पथ पर आगे बढ़ना
सदा ही निरंतर ।.............................. बहुत भावपूर्ण पंक्तियाँ, बधाई आ० अन्नपूर्णा जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
6 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service