For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - सितम सारे सहें कुछ यूँ

1222. 1222

चलो चल कर कहें कुछ यूँ
सितम सारे सहें कुछ यूँ

रियावत ओढ़ लें थोड़ा
जुदाई को सहें कुछ यूँ

सफीना कागजों का था
लहर से हम कहें कुछ यूँ

नशेमन नम न हो कोई
नयन अपने बहें कुछ यूँ

सितारें खोज लें हमको
अँधेरों में रहें कुछ यूँ

रियावत - परंपरा
सफीना - नाव
नशेमन - घोंसला

पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 882

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on September 23, 2013 at 10:21am

नशेमन नम न हो कोई
नयन अपने बहें कुछ यूँ !

वाह बढ़िया ग़ज़ल पूनम जी !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 23, 2013 at 10:08am

अन्धेरा और अँधेरा एक अर्थ को निरुपित करते दो अलग-अलग शब्द हैं.

इस ग़ज़ल में अँधेरों का सही वज़्न हुआ है.

दाद कुबूल फ़रमायें पूनमजी.. .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 23, 2013 at 9:24am

पूनम जी ग़ज़ल अच्छी है,दाद कुबूल करें,

एक बार "रियावत" शब्द को लेकर आश्वस्त हो लें यह उर्दू का है या हिन्दी का??

Comment by saalim sheikh on September 23, 2013 at 2:45am
Giriraj ji, Munawwar sahab ke is sher mr 'andheron' ka wazan dekhen
Aye andhere dekh le munh tera kala ho gaya
maa ne ankhen khol din ghar me ujala ho gaya
2122 2122 2122 212
2122 2122 2122 212
Comment by saalim sheikh on September 23, 2013 at 2:30am
Adarniya Poonam ji Behad khubsurat gazal ke liye bahut bahut badhai swikaren
Adarniy Giriraj ji 'andheron' ka sahi wazan(urdu talaffuz ke mutabiq) mere khyal mein 122 hi hona chahiye
Comment by Saarthi Baidyanath on September 22, 2013 at 8:23pm

महोदया ..ग़ज़ल का मतला कमाल का लगा ...! अशआर भी खूब हुए हैं !...दाद हाज़िर है ..! नमन सहित :)

Comment by Monnmani Antaryami on September 22, 2013 at 6:24pm

bahut achha hai..subhan allah Poonam ji....mubarak baad....

Comment by Abhinav Arun on September 22, 2013 at 2:17pm

हर शेर लाजवाब आदरणीया पूनम बहुत खूब ग़ज़ल कही है --

सितारें खोज लें हमको
अँधेरों में रहें कुछ यूँ

बहुत बधाई और शुभकामनायें 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 22, 2013 at 1:23pm

रियावत ओढ़ लें थोड़ा
जुदाई को सहें कुछ यूँ.........यह शेर बहुत पसंद आया

सुंदर गजल पर , बधाई स्वीकारें आदरणीया पूनम जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 22, 2013 at 11:46am

आदरणीया पूनम जी , बहुत शानदार ग़ज़ल  कही है आपने , वाह !! ढ़ेरों बधाइयाँ !!

नशेमन नम न हो कोई
नयन अपने बहें कुछ यूँ ------------ क्या बात है !!

बस , अँधेरों  मे शंका है , अन्धेरों ( 222 ) को अँधेरों (122 ) किया जा सकता है कि नही !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
25 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service