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एक दिन
तुमने कहा था
मैं सुंदर हूँ
मेरे गेसू काली घटाओं की तरह हैं
मेरे दो नैन जैसे मद के प्याले
चौंक कर शर्मायी
कुछ पल को घबरायी
फिर मुग्ध हो गयी
अपने आप पर
पर जल्द ही उबर गयी
तुम्हारे वागविलास से
फंसना नहीं है मुझे
तुम्हारे जाल में
सदियों से
सजती ,संवरती रही
तुम्हारे मीठे बोल पर
डूबती उतराती रही
पायल की छन छन में
झुमके , कंगन , नथुनी
बिंदी के चमचम में
भुल गयी
प्रकृति के विराट सौन्दर्य को
वंचित हो गयी
मानव जीवन के
उच्चतम सोपानो से
और
तुमने छक के पीया
जम के जीया
जीवन के आयामों को
पर इस बार नहीं
भरमाओ मत
देवता बनने का स्वाँग
बंद करो
साथ चलना है , चलो
देहरी सिर्फ मेरे लिए
हरगिज नहीं

मौलिक व् अप्रकाशित

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 22, 2013 at 1:27pm

साथ चलना है , चलो
देहरी सिर्फ मेरे लिए
हरगिज नहीं............सच! सटीक बात

बहुत सुंदर व् वास्तविक रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीया महिमा जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2013 at 8:22pm

साथ चलना है , चलो
देहरी सिर्फ मेरे लिए
हरगिज नहीं --------------- वाह महिमा जी , बराबरी का हक़ , स्वच्छन्द उडान , नारी जागृति की ओर !! बधाई !!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 21, 2013 at 8:13pm

और
तुमने छक के पीया
जम के जीया
जीवन के आयामों को
पर इस बार नहीं
भरमाओ मत
देवता बनने का स्वाँग
बंद करो

आदरणीया महिमा जी ..कुछ अलग ही तेवर ...जरुरत भी है चेतावनी की ...बदले किसी भी तरह तो बदले ये समाज ...चाहे दुर्गा या काली . सुन्दर भाव

...बधाई


भ्रमर ५

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 21, 2013 at 4:47pm

आदरनीया महिमा जी . ..देवता बनने का स्वाँग
बंद करो
साथ चलना है , चलो
देहरी सिर्फ मेरे लिए
हरगिज नहीं..सुन्दर रचना की इन शानदार पंकित्यों के लिए हार्दिक बधाई 

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