नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे
नई डगर पे अब क़दमों को मोड़ दे!!
राहों में जब
तेरी कंटक आयेंगे
उलझेंगे फिर
मन को बहुत डरायेंगे
आगे बढ़कर उस डाली को तोड़ दे
जहरीली मूलों को तू झिंझोड़ दे
नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे!!
घर के तेरे
दरवाजे भी टोकेंगे
मर्यादा की
बैसाखी से रोकेंगे
आगे बढ़कर उनके रुख को मोड़ दे
घूंघट में छुप कर शर्माना छोड़ दे
नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे!!
दुश्मन तेरे
होंसलों को ढापेंगे
अवसर पाकर
तेरे कद को नापेंगे
उठकर उनकी गर्दने तू मरोड़ दे
अबला तू खुद को कहलाना छोड़ दे
नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे!!
तेरे साथी
घर से बाहर आयेंगे
तेरे क़दमों
से वो कदम मिलायेंगे
एक हाथ से दूजा हाथ तू जोड़ दे
दुराचारियों के मंसूबे तोड़ दे
नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे!!
तुझ में दुर्गा
तुझी में शक्ति छुपी हुई
समझा दे तू
बैरी को अब अति हुई
झूठे बंधन झूठी रस्में छोड़ दे
राहों के पत्थर ठोकर से फोड़ दे
नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे!!
नई डगर पे अब क़दमों को मोड़ दे!!
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मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय शिज्जू जी गीत आपको पसंद आया मेरा लेखन सार्थक हुआ हार्दिक आभार आपका
आदरणीय अखिलेश जी गीत आपको पसंद आया मेरा लेखन सार्थक हुआ आपकी सलाह सराहनीय है हार्दिक आभार आपका
आदरणीय लक्ष्मण जी आपकी बातो से सहमत हूँ आज का दौर बदलाव चाहता है तभी नारी अपने स्वाभिमान ,अपना अस्तित्व ,को बचा पाएगी रचना आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ हृदय से आभारी हूँ
आदरणीया राजेश दीदी नारी जाति का उत्साहवर्धन करती इस कामयाब रचना के लिये दिली दाद कुबूल करें
नारी जाति को जगाने का सार्थक काम किया है आपने, बधाई राजेश कुमारीजी। नारी शब्द से पहले " हे " लगा देने से उसे और सम्मान मिलता। ( हे नारी तू ये पंथ पुराना छोड़ दे )
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी गीत का अनुमोदन करने के लिए दिल से आभारी हूँ मेरा लिखना सार्थक हुआ
नारी तू पंथ पुराना छोड़ दे | समय परिवर्तन शील है | समय के साथ बदलाव न कर पाने के कारण पिछड़ जाने का अहसास
कराती सुन्दर रचना : भारतीय नारी घुंघट में रहती शर्माती रही है, उनके लिए सार्थक सन्देश देती विशषकर नारी जगत को
आगे बढ़ने के लिए आह्वान करती ऐसे रचनाए आवश्यक है जो नारी समाज में चेतना ला सके | ढेरों बधाईयाँ आदरणीया
राजेश जी
आदरणीय राजेश कुमारी जी , नारी जागृति के लिये बहुत ही अच्छा गीत रचना !! हर बन्द प्रवाह मे है !! हार्दिक बधाई !!
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