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चोरों की बारात, बजाये रविकर वंशी-

वंशीधर का मोहना, राधा-मुद्रा मस्त । 

नाचे नौ मन तेल बिन, किन्तु नागरिक त्रस्त । 

 

किन्तु नागरिक त्रस्त, मगन मन मोहन चुप्पा । 

पाई रहा बटोर, धकेले लेकिन कुप्पा । 

 

बीते बाइस साल, हुई मुद्रा विध्वंशी । 

चोरों की बारात, बजाये रविकर वंशी ॥ 

मौलिक / अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2013 at 10:45pm

आपकी संवेदनशील दृष्टि के लिए बधाई.. .

सादर आदरणीय

Comment by annapurna bajpai on August 31, 2013 at 12:52pm

बहुत सुंदर भावभिव्यक्ति आदरणीय रविकर जी । बधाई ।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 30, 2013 at 7:56pm

बहुत सुन्दर भाई श्री रविकर जी, बधाई -

रविकर तू बंशी  बजा, नागिन की फुफकार 

नाचे नौ मन तेल बिन,चले मस्त सरकार |

चले मस्त सरकार,  मन  मुग्ध होय मीरा

घाटे की सरकार,   लगा जनता के चीरा

चलते अब ये चाल,देख चुनाव का चक्कर

मोहन का है राज, बजाये बंशी रविकर | -  लक्ष्मण    

 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 29, 2013 at 11:59pm

अतिसुन्दर रचना, बधाई आदरणीय रविकर जी

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 29, 2013 at 9:13pm

आ0 रविकर भाई जी,   अतिसुन्दर ।  हृदयतल से हार्दिक बधाई।  सादर,

Comment by रविकर on August 29, 2013 at 8:02pm

आभार
आदरणीय बंधुओं -

Comment by Ashish Srivastava on August 29, 2013 at 7:57pm

ati sundar rachna , badhai 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 29, 2013 at 7:15pm

बढ़िया है! विजय जी की प्रतिक्रिया से सहमत!

Comment by विजय मिश्र on August 29, 2013 at 6:22pm
"किन्तु नागरिक त्रस्त, मगन मन मोहन चुप्पा । " - आनंद आ गया ,रविकरजी .सम्पूर्ण भारत का विश्वास ध्वस्त किया और प्रजातंत्र का इतना दुरूपयोग इतिहास में कालबद्ध होने योग्य कर दिया इस गूंगे ने . .
Comment by राजेश 'मृदु' on August 29, 2013 at 5:23pm

बहुत ही धांसू रचना है आदरणीय, सादर

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