For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भाई बहन के प्यार का प्रतीक है रक्षाबंधन ( लेख - कुछ अदृष्ट्य तथ्य )

मनुष्य स्वभावतः उत्सव प्रिय एवं प्रकृति प्रेमी है । ग्रीष्म ऋतु के अवसान के पश्चात जब आषाढ़ और सावन आकाश मे काले काले घुमड़ते बादल झमझमाती बारिश लेकर आते है तब शुष्क और तपती हुई धरा धीरे धीरे तृप्त होती जाती है । सावन का महीना लगते ही हरियाली हरियाली ही दिखाई देती है । इस ऋतु परिवर्तन पर प्रकृति की मन भावन सुषमा एवं सुंदर परिवेश को पाकर मानव मन आन्नादित हो उठता है और ऋतुओं के अनुसार पर्व एवं त्योहार भी आरंभ हो जाते है । सावन के महीने मे ही तीज , नागपंचमी और सावन का अंत श्रावणी पूर्णिमा यानि रक्षाबंधन के पवित्र पर्व से होता है ।

बहनों को खास कर इस पर्व का बड़ी बेसब्री से इन्तजार रहता है उन्हे अपने भाइयों से अमूल्य भेंट जो मिलने वाली होती है । हर दिन घरों मे आपस मे झगड़ते हुये भाई बहन इस दिन हर झगड़ा भूल जाते है एक दूसरे को प्यार और स्नेह से आल्हादित करते है । बहने भाई को हमेशा खुश और विजयी देखना चाहती है भाई भी बहन की हर इच्छा पूरी करने को तत्पर रहता है ।

 इस संबंध मे एक कथा प्रचिलित है :- श्री कृष्ण और द्रौपदी की है , एक समय की बात है जब श्री कृष्ण ने शिशु पाल का वध किया था और उनका हाथ जख्मी हो गया तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी से फाड़ कर पट्टी बांध दी । कृष्ण ने उनसे समय आने पर उनकी मदद का वादा किया । जब पांडव जुए मे सब हारने के बाद अंत मे द्रौपदी को भी हार गए तब कौरवों ने उनका अपमान करने हेतु उन्हे दरबार मे खीच लिया और उनकी साड़ी खींचने लगे । उस समय द्रौपदी ने श्री कृष्ण को पुकारा उन्होने आकार असीमित साड़ी उन्हे दी जिसे कौरव नहीं उतार पाये और उनका अपमान होने से बच गया । इस तरह श्री कृष्ण ने अपना भाई का फर्ज निभाया ।

 एक और कथा - एक समय जब देवताओं और असुरों मे कई वर्षों तक संग्राम होता रहा , जिसमे देवताओं की पराजय हुई और असुरों ने स्वर्ग पर आधिपत्य कर लिया । दुःखी पराजित इंद्र देव गुरु बृहस्पति के पास गए और कहने लगे कि गुरु देव मै न तो यहाँ ही सुरक्षित हूँ और न ही यहाँ से कहीं निकल कर जा ही सकता हूँ ऐसी दशा मे मुझे युद्ध के अलावा और कोई विकल्प नहीं दिख रहा है मुझे युद्ध करना ही पड़ेगा । जब कि अब तक के युद्ध मे हमारा पराभव ही हुआ है । इस वार्तालाप को इंद्राणी भी सुन रहीं थीं । उन्होने कहा कल श्रावणी पूर्णिमा है मै विधान पूर्वक एक रक्षा सूत्र तैयार करूंगी जिसे आप विधि पूर्वक ब्राम्ह्णो से बँधवा लीजिएगा जिससे आप अवश्य विजयी होंगे । दूसरे दिन इन्द्र ने बड़े ही यत्न और स्वस्तिवाचन पूर्वक शुभ मुहूर्त मे रक्षाबंधन करवाया जिससे उनकी विजय हुई तब से ये रक्षा सूत्र इसी शुभ मुहूर्त मे बहने अपने भाइयों की विजय की कामना से उनकी कलाइयों पर बांधने लगी । उनका मानना है कि उनके द्वारा बांधा गया रक्षा सूत्र उनके भाइयों को हर कुदृष्टि से बचाएगा और उन्हे विजयश्री दिलवाएगा । ये मात्र बंधन नहीं है इसमे प्यार और विश्वास भी जुड़ा है । जिस प्यार और विश्वास से बहन भाई की कलाई पर ये रक्षा सूत्र बांधती है उसी प्यार और विश्वास से भाई उन्हे खुश रखने का वचन देता है ।

इस संबंध मे एक कथा और प्रचिलित है कि चित्तौड़ की महारानी कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेज कर उससे मदद का तोहफा लिया था, जब बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर हमला कर दिया था जीतने की कोई राह न थी उनके पास उतना सैन्य बल भी नहीं था तब उन्हे यही रास्ता सूझा था। शाह हुमायूँ ने अपनी मुंह बोली बहन का प्रस्ताव स्वीकार कर भाई का रिश्ता बखूबी निभाया था ।

कथाएँ तो कई हो सकती है लेकिन मुख्य बात ये है कि ये त्योहार बहन और भाई के प्यार का प्रतीक है , बहने भाई की विजय की कामना से उन्हे यह रक्षा सूत्र बांधती है बदले मे भाई उनकी सुरक्षा का वचन देते है । आज समय बहुत बदल गया है भाई बहन दूर दूर रहते है किसी का भाई विदेश मे है या किसी की बहन विदेश मे है या देश मे ही हैं तो भी वे समय पर पहुँच नहीं सकते क्योंकि नौकरी की समस्या है । ऐसे भाईयों की बहने  उन्हे पहले से ही रखियाँ भेज देती है ताकि वे समय पर राखी बांध सके उनकी कलाई सूनी न रहे। और तो और अब तो नेट से ही राखी भेज दी जाती है और नेट के द्वारा ही गिफ्ट भी भेज दिये जाते है । किसी को कोई शिकायत ही नहीं । ये सिर्फ उनके बीच का प्यार ही तो है । ये पर्व है ही इतना सौहाद्रपूर्ण । आज की आपाधापी भरी ज़िंदगी मे कुछ पल अपने भाइयों व बहनों के लिए निकाल कर इन  सुमधुर पलों को भरपूर जी लिया जाए ।  ये राखी के धागे केवल धागे नहीं अपितु रिश्तों का मजबूत बंधन है । इन्हे हर जतन से बाँधे रखिए ।

 

प्रस्तुति :- अन्नपूर्णा बाजपेई

 

अप्रकाशित एवं मौलिक

Views: 483

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 25, 2013 at 11:36am

रक्षाबन्धन से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ आपने साझा किया है, आदरणीया.

हार्दिक बधाइयाँ. 

यह अवश्य है कि रक्षाबन्धन की अपने राष्ट्र में परंपरा रही है, तभी कर्मवती ने हुमायूँ का आह्वान किया था. आपने कतिपय कथाओं को प्रस्तुत कर इस तथ्य को सुदढ किया है

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
21 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
yesterday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति के लिए ।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service