फूल चम्पा के सब खो गए
जब से हम शह्र के हो गए
रात फिर बेसुरी धुन बजाती रही
दोपहर भोर पर मुस्कुराती रही
रतजगों की फसल
काटने के लिए
बीज बेचैनी के बो गए
प्रश्न पत्रों सी लगने लगी जिंदगी
ताका झाकी का मोहताज़ है आदमी
आयेगा एक दिन
जब सुनेंगे यही
लीक पर्चे सभी हो गए
मौल श्री से हैं झरते नहीं फूल अब
गुलमोहर के तले है न स्कूल अब
अब न अठखेलियाँ
चम्पई उंगलियाँ
स्वप्न आये न फिर जो गए
(मौलिक अवं अप्रकाशित)
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प्रश्न पत्रों सी लगने लगी जिंदगी
ताका झाकी का मोहताज़ है आदमी
आयेगा एक दिन
जब सुनेंगे यही
लीक पर्चे सभी हो गए.....सुंदर रचना ...सादर बधाई के साथ
आदरणीय Laxman Prasad Ladiwala जी गीत पसंद करने के लिए शुक्रिया|
आदरणीय राज़ नवादवी साहब आपने गीत को सराहा मेरा लेखन सफल हुआ| मशकूर हूँ|
आदरणीया Dr.Prachi Singh जी आपकी सकारात्मक टिपण्णी ही मेरा संबल है| हार्दिक धन्यवाद|
आदरणीय vijay nikore जी गीत को सराहने के लिए हार्दिक धन्यवाद|
आदरणीया Vasundhara pandey जी गीत पसंद करने के लिए शुक्रिया|
आदरणीय Arun Srivastava जी गीत पसंद करने के लिए आभार|
मौल श्री से हैं झरते नहीं फूल अब
गुलमोहर के तले है न स्कूल अब
अब न अठखेलियाँ
चम्पई उंगलियाँ
स्वप्न आये न फिर जो गए
'फूल चम्पा के सब खो गए
जब से हम शह्र के हो गए' -----बहुत सुन्दर और भापूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री राना प्रताप सिंह जी
'फूल चम्पा के सब खो गए
जब से हम शह्र के हो गए'
'मौल श्री से हैं झरते नहीं फूल अब
गुलमोहर के तले है न स्कूल अब'
एक एक पंक्ति दिल से निकली और दिल को छू जाने वाली.... समीचीन, समसामयिक, और उतनी ही भाव और भंगिमा से पूर्ण. एक झरना पहाड़ियों से अभी निकला और अभी ओझल हो गया....आपकी कविता कुछ इस गति से बढ़ती और अपने उत्कर्ष पे पहुँचती है. बधाई स्वीकार करें.
गहन भावानुभूतियों को सुकोमल हृदयस्पर्शी शब्दरूप दे नवगीत में ढाला है..
हर बंद नें रोक लिया कुछ पल खामोशी से डूबने उतराने के लिए....इन तीनों बन्दों की अनुगूँज मनसपटल पर दीर्घकालिक स्पंदन छोड़ने में सक्षम है..
बहुत बहुत बधाई इस अभिव्यक्ति पर आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी
सादर.
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