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ग़ज़ल - तितलियाँ आती नहीं मकरंद पाने के लिए !

ग़ज़ल - 
हमने कुछ पौधे लगाए नाम पाने के लिए ।
और जंगल काट डाले आशियाने के लिए

टंग गए हर छत हर एक मुंडेर पर पिंजरे मिया,
हसरते सब मर गयीं चिड़िया चुगाने के लिए ।

 अब खबर में खेल में और ख़्वाब में बन्दूक हैं,
 कौन आगे आएगा बचपन बचाने के लिए ।

 पर्वतों ने आदमी को घर बनाता देखकर,
 बादलों को दे दिया ठेका भगाने के लिए  ।

 क्यों करें बर्दाश्त बादल, आखिरश वो फट पड़े
 हम हदों को लांघते थे मौज पाने के लिए ।

 उन फिराकों साहिरों फैजों ने हमको सीख दी ,
 एक शाइर शाइरी करता ज़माने के लिए ।

आदमीयत का तरक्की से है उल्टा वास्ता ,
झुग्गियां गिर जायेंगी, होटल बनाने के लिए ।

फोन ने इंसान को दे दीं हजारों मोहलतें ,
एक मैसेज कर दिया रिश्ता मिटाने के लिए ।

ये गुलों की बेरुखी है या दवाओं का असर ,
तितलियाँ आती नहीं मकरंद पाने के लिए ।
       
             {* सर्वथा मौलिक और अप्रकाशित }
                                 -   अभिनव अरुण 
                                []may-june-july2013[]

 
                         - 

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on July 26, 2013 at 7:36am

आपकी बधाई मेरा हौसला बढाने वाली है आदरणीय श्री अरुण अनंत जी बहुत आभार आपका .

Comment by Abhinav Arun on July 26, 2013 at 7:35am

बहुत आभार आदरणीय श्री वीनस जी ...आपकी सीख और कक्षाओं से जो कुछ भी बन पड रहा है वह प्रस्तुत है ..आपका स्नेह बना रहे यही कामना है .

Comment by वीनस केसरी on July 26, 2013 at 3:15am

मुकम्मल ग़ज़ल शानदार ... सामयिकता को बखूबी बांधा है यही आपकी विशेषता भी है , 
वैसे इस ग़ज़ल में सामयिकता सर्वकालिक हो जाए तो आनंद दोगुना हो जाए 

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 25, 2013 at 10:17pm

वाह भाई जी वाह कुछ अधिक कहने के लिए नहीं है हृदय से ढेरों बधाइयाँ स्वीकारें. आनंद आ गया ह्रदय तृप्त हो गया.

Comment by Neeraj Nishchal on July 25, 2013 at 9:59pm

Soch nhi paa rahaa hun kis kis line ki tareef karun sab ek badhkar ek hain

 उन फिराकों साहिरों फैजों ने हमको सीख दी ,
 एक शाइर शाइरी करता ज़माने के लिए ।

Comment by राज़ नवादवी on July 24, 2013 at 10:36pm

वाह भाई वाह 

ये गुलों की बेरुखी है या दवाओं का असर ,
तितलियाँ आती नहीं मकरंद पाने के लिए । 

Comment by Ketan Parmar on July 24, 2013 at 4:46pm

फोन ने इंसान को दे दीं हजारों मोहलतें ,
एक मैसेज कर दिया रिश्ता मिटाने के लिए ।

YE MERE SATH HO CHUKAA HAI SIR JI UMDA KHAYAL AAPKA BADHAI

Comment by coontee mukerji on July 24, 2013 at 3:28pm

 पर्वतों ने आदमी को घर बनाता देखकर,
 बादलों को दे दिया ठेका भगाने के लिए  ।................वाह क्या बात कही


ये गुलों की बेरुखी है या दवाओं का असर ,
तितलियाँ आती नहीं मकरंद पाने के लिए.............ये दवाइयों का ही असर है.

.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 24, 2013 at 2:54pm

आदरणीय अरुण जी 

हर शेर नें बाँध लिया... वाह !

इसे कहते हैं ऐसी गज़ल जो पाठक हृदय को संतृप्त कर दे...और क्या कहूँ तारीफ़ में..ऐसी लेखनी की ताकत पर हृदय नत होता है.

बहुत बहुत बधाई 

सादर.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 24, 2013 at 1:57pm

बेहतरीन ..हर शेर उम्दा ..आपकी ग़ज़ल चेतावनी दे रही इशारा कर रही है कोई फिर भी न समझे तो क्या किया जाए ..सार्थक  रचना सादर बधाई के साथ 

कृपया ध्यान दे...

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