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काश : होते परिंदे

चाँद यहाँ भी ,

चाँद वहाँ  भी 
इंसान में लहू 
 यहाँ भी वहाँ भी
फिर भी क्यूँ है ?
सरहदों पर लकीरें 
लोग बने क्यों फिर रहे 
लकीर के फ़क़ीर 
क्यूँ बना डाली 
नफरतों की  दीवार 
कुछ वक्त पहले तक 
थे दोनों एक 
मुल्क एक दुःख एक 
राज एक सुख एक 
थे एक ही जगह के वाशिंदे 
काश  हम इंसान भी होते परिंदे 
जो उड़ते यहाँ भी ,वहाँ भी 
जिन्हें रोक न पाती  लकीरें
छोटी पड़ जाती जहाँ 
नफरतों की दीवारें 
कभी गंगा कभी झेलम के पानी पी 
फैलाते अमन चैन का सन्देश 
.
मौलिक और अप्रकाशित  

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Comment

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Comment by shubhra sharma on July 30, 2013 at 10:03am

मैं ओ बी ओ परिवार से जुड़े सभी सदस्यों को ,खासकर ओ बी ओ प्रबंधन को , तहे दिल से शुक्र गुजार हू  जिन्होंने मुझे अपनी विचारो की अभिव्यक्ति के लिए एक समृध मंच दिया  , 

Comment by shubhra sharma on July 30, 2013 at 9:57am

आदरणीय लडिवाला  जी  , हौसलाफजाई के लिए   बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by shubhra sharma on July 30, 2013 at 9:54am

आदरणीय  आशुतोष मिश्रा  जी  ,आपको मेरी कविता अच्छी लगी ,  बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by shubhra sharma on July 30, 2013 at 9:51am

आदरणीया  प्राची जी  ,  बहुत बहुत धन्यवाद , 

Comment by shubhra sharma on July 30, 2013 at 9:49am

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , उत्साह वर्धन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद , आपकी लिखी ये पंक्तियाँ लम्बे समय तक प्रेरित करेगी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 25, 2013 at 10:46am
छोटी पड़ जाती जहाँ 
नफरतों की दीवारें 
कभी गंगा कभी झेलम के पानी पी 
फैलाते अमन चैन का सन्देश -------काश अब भी ऐसा ही हो, न कोई संदेह हो न कोई दिवार | सुंदर प्रस्तुति केलिए बधाई 
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 25, 2013 at 6:44am

मनभावन ..क्या लाजबाब कामना की है आपने ..पंख होते तो उड़ जाती मैं /ये पंक्तियाँ बरबस याद आ गयीं ..न कोई सरहद न कोई दीवार ...बस जहाँ में हो प्यार ही प्यार ..ढेरो बधाई स्वीकार करें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 24, 2013 at 12:08pm

ममस्पर्शी अभिव्यक्ति 

बहुत सुन्दर , हार्दिक बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 24, 2013 at 9:53am

आदरणीया शुभ्राजी,  आपके सद्विचारों से सुखी हुए.

इसी ज़मीन पर निदा फ़ाज़ली की एक बेजोड़ और बहुत ही प्रसिद्ध ग़ज़ल है, वो अनायास याद आ गयी.

शुभकामनाएँ

Comment by shubhra sharma on July 23, 2013 at 10:53pm

आदरणीय अरुण जी अच्छे अभ्युक्ति के लिए  बहुत बहुत धन्यवाद 

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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