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नवगीत (राजेश कुमार झा)

इक औरत सी तन्‍हाई को

जब यादें कंधा देती हैं

दीर्घ श्‍वांस की

चंड मथानी

मथ जाती

देह-दलानों को

टूटे प्‍याले

रोज पूछते

कम-ज्‍यादा

मयखानों को

गलते हैं हिमखण्‍ड कई पर

धारा कहां निकलती है

नि:शब्‍द सुलगती

रात पसरती

उष्‍ण रोध दे

प्राणों को

कौन रिफूगर

टांक सकेगा

इन चिथड़े

अरमानों को

कैसे पाउं मंजिल ही जब

पल-पल जगह बदलती है

कीर्ण आस भी

चली रसातल

भुवन-भार दे

तानों को

पीत-पर्व के

तिरते बादल

करते चूर

निशानों को

होता मैं दाधीच अस्थियां

लेकिन सहज पिघलती हैं

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by राजेश 'मृदु' on July 12, 2013 at 2:20pm

आदरणीय डॉ0 आशुतोष जी, कठिन शब्‍दों की जगह सरल शब्‍द रखने का पूरा प्रयास करूंगा क्‍योंकि इससे संप्रेषण बाधित होता है ऐसा मेरा मानना है, यह कमी दूर करने का जरूर प्रयास करूंगा, आप ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहें, सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on July 12, 2013 at 2:17pm

आदरणीया महिमा जी, आपका हार्दिक आभार

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 12, 2013 at 8:10am

आदरनीय राजेश जी .आपका नवगीत बार बार पढ़ा..बहुत ही अच्छा लगा ..लेकिन  यदि कुछ कठिन शब्दों के अर्थ भी साथ में दिए जाए तो पढने के आनंद में चार चाँद लग जाएँ और सीखने के लिए कुछ नए शब्द मिल जाएँ ..आपके इस शानदार प्रयास पर हार्दिक बधाई ..सादर 

Comment by MAHIMA SHREE on July 11, 2013 at 10:23pm

..

इक औरत सी तन्‍हाई को

जब यादें कंधा देती हैं... बहुत ही सुंदर नवगीत आदरणीय राजेश जी .. कई बार पढ़ गयी ..बहुत -२ बधाई आपको

Comment by राजेश 'मृदु' on July 11, 2013 at 6:27pm

आदरणीया प्राची जी, आपका आभार, पर ओबीओ टीम के सदस्‍यों से केवल तारीफ की अपेक्षा नहीं रहती, कुछ मार्गदर्शन करें तब तो बात बने, सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 11, 2013 at 6:21pm

बहुत खूबसूरत नवगीत लिखा है आ० राजेश झा जी 

बहुत बहुत बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2013 at 5:16pm

// आशा है आपका मार्गदर्शन सबके लिए समान रूप से लाभदायक होगा//

अभी तक तो इस अकिंचन का प्रयास ऐसा ही रहा है, आदरणीय. 

इसके अलावे भी आपने कुछ देखा अथवा अनुभव किया है क्या ? यदि हाँ, तो आप मेरे असहज समर्थन या अनदखे को अवश्य समक्ष कीजियेगा, ताकि मैं अपने में सार्थक सुधार ला सकूँ.  हमने किसी असहजता को सायास समर्थन नहीं दिया है.

सर्वोपरि, यह परस्पर सीखने-सिखाने का ही तो मंच है.

सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on July 11, 2013 at 5:07pm

आदरणीय, आपकी नजर में स्‍कैनर लगा हुआ है, कितनी भी चतुराई से निकलने का प्रयास करें, पकड़ ही लेते हैं । 'पाउं' मजबूरी में लिखा क्‍योंकि की-बोर्ड तभी सपोर्ट नहीं कर पाई, शेष आपने बिल्‍कुल सही पकड़ा है, यथासंभव प्रयास करता हूं कि इनका प्रयोग कम से कम करूं पर कई बार ऑप्‍शन मेरे सामने नहीं होते  तभी ऐसे प्रयोग करने पड़ते हैं । आशा है आपका मार्गदर्शन सबके लिए समान रूप से लाभदायक होगा, सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2013 at 4:59pm

प्रस्तुत नवगीत में प्रयुक्त कतिपय शब्दों की यथासम्भव शुद्ध अक्षरियाँ दी गयी हैं आदरणीय. मेरा इन्हीं शब्दों की ओर इशारा है - 

दलानों - दालानों

उष्‍ण - ऊष्ण

रिफूगर - रफ़ूग़र

पाउं - पाऊँ

दाधीच - दधीचि

सादर

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 11, 2013 at 4:21pm

bahut sundar aadarneey ,,,,,,,,,,,,,kya baat hai

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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