For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कि इश्क सुन तिरे हवाले ताज करते हैं

कि इश्क सुन  तिरे हवाले ताज करते हैं
कि प्यार कल भी था तुझी से आज करते हैं

हुकूमतों का शोख़ रंग यह भी है यारों
कि हम जहाँ नहीं दिलों पे राज करते हैं

बहुत लगाव है हमें वतन की मिटटी से
इसी  पे जान दें इसी पे नाज़ करते हैं

नरम दिली नहीं समझते देश के दुश्मन
चलो कि आज हम गरम मिज़ाज करते 

मिरे वतन के फौज़ियों सलाम है मेरा
 तुझी से मान है तुझी पे नाज़ करते हैं 

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1007

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by sanju shabdita on July 5, 2013 at 1:01am

आदरणीय सौरभ सर सादर प्रणाम आपको ''कृपया'' कहने की आवश्यकता नहीं मैं अपने कहे को वापस लेती हूँ।
आदरणीय बृजेश जी का भी मैं सम्मान करती हूँ। मैं सदैव सीखने के लिए ही तत्पर हूँ ,अभी तो आप सभी से मुझे बहुत
कुछ सीखना है। मैं तो चाहती हूँ कि आप सभी मेरा मार्गदर्शन करें ...
सर एक जिज्ञाषा कि  जिस प्रकार हम किसी ग़ज़ल में उर्दू शब्द का प्रयोग कर सकते हैं तो क्या तिरे मिरे उर्दू शब्द का प्रयोग
भी किया जा सकता है या नहीं।आपके मार्गदर्शनों हेतु  सदाकांक्षी ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 5, 2013 at 12:29am

// इसी मंच पर प्रायः लोग उर्दू शब्दों का प्रयोग तो करते हैं पर लिपि का नहीं।//

ऐसे न कहें कृपया, हिन्दी उर्दू का कई बखेड़ा नहीं है, सन्जू जी. यह अवश्य है कि हिन्दी शब्दों को उसी मूल रोप में लिखना उचित होता है. जहाँ बह्र के अनुसार बतने की आवश्यकता होगी, लोग मात्रा को गिरा लेंगे.

भाई बृजेश जी एक अनुभवी और ठोस पाठक हैं. वैसे, पाठक कोई हो यदि वह कुछ सकारात्क कहता है तो उसे सुनना चाहिये. रचनाओं में अन्यथा पर कुछ कहना सुधी पाठकों का हक़ है. 

शुभेच्छाएँ

Comment by sanju shabdita on July 5, 2013 at 12:28am

आदरणीय बृजेश जी आपकी संशोधित टिप्पणी का स्वागत है

Comment by sanju shabdita on July 5, 2013 at 12:04am

आदरणीया कुंती जी  सादर प्रणाम एवं सादर आभार ..

Comment by sanju shabdita on July 4, 2013 at 11:52pm

आदरणीय बृजेश जी यह मेरा दुर्भाग्य ही है कि  आपको मेरी ग़ज़ल में सिर्फ तिरे और मिरे ही दिखाई दिये।
रही बात शब्दों के भद्द पिटने की तो मेरी ऐसी मंशा बिल्कुल नहीं थी। मैंने तो बहर को ध्यान में रखकर तिरे और
मिरे का प्रयोग किया जिससे कि 1 2 ही माना जाय 2 2 नहीं। फिर भी यदि आपको ऐसा प्रतीत हुआ तो मैं क्षमा -प्रार्थी हूँ।
और एक बात ... इसी मंच पर प्रायः लोग उर्दू शब्दों का प्रयोग तो करते हैं पर लिपि का नहीं।
                                  आभार ...................

Comment by बृजेश नीरज on July 4, 2013 at 11:25pm

आपकी रचना के भाव बहुत अच्छे हैं।

हिन्दी में न तो ‘तिरे’ कोई शब्द होता है और न ‘मिरे’। उर्दू में यदि होता है तो बेहतर है कि रचना उर्दू लिपि में ही लिखी जाए।

यहां एक बात स्पष्ट कर दूं कि गजल में ‘मेरे’ के ‘मे’ की मात्रा गिरायी जा सकती है लेकिन हिन्दी भाषा ‘मेरे’ के स्थान पर ‘मिरे’ लिखना स्वीकार नहीं करती।

सादर!

Comment by MAHIMA SHREE on July 4, 2013 at 11:17pm

मिरे वतन के फौज़ियों सलाम है मेरा
तुझी से मान है तुझी पे नाज़ करते हैं.... आदरणीया संजू जी बहुत ही अच्छे भाव है आपकी रचना में बहुत-२ बधाई आपको

Comment by coontee mukerji on July 4, 2013 at 6:20pm

बहुत सुंदर.मिरे वतन के फौज़ियों सलाम है मेरा
 तुझी से मान है तुझी पे नाज़ करते हैं


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 4, 2013 at 1:54pm

संजू जी, आपकी इस ग़ज़ल पर आपको बधाई, वतन और फ़ौजियों के नाम ये ग़ज़ल वाकई बेहतरीन बन पढ़ा है

Comment by sanju shabdita on July 4, 2013 at 1:27pm

आदरणीय सौरभ सर सादर प्रणाम ....आपने बिल्कुल सही समझा ,मैंने मतला सबसे बाद में और सबसे जल्दी लिखा .
मैं भी सोच रही हूँ कि मतला बदल दूँ . आपके सुझाव का आगे से ख्याल रखूँगी .मेरे भाव शब्द आप तक पहुँचे ,ग़ज़ल सार्थक
हुई .मार्गदर्शन हेतु आपका ह्रदय से बहुत -बहुत -बहुत ........आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service