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रिश्ता.... 

ख्वाब नहीं है 

ये मेरा ख्याल नहीं है 

ये तेरा सवाल नहीं है 

रिश्ता ..... 

किसी  के लिए चाँद है 

किसी के लिए ख्वाब है 

तो किसी के लिए कसक है 

किसी के लिए महक है 

रिश्ता .... 

बहता पानी है 

मानो तो अमृत है 

न मानो तो बहता पानी है 

रिश्ता .... 

रेत है 

जितना पकड़ो 

सरकता जाता है 

रिश्ता तो रिसता है 

रिश्ता ..... 

खून का हो 

या हो तेरा, या हो मेरा 

रिश्ता तो रिसता है .... 

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 613

Comment

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Comment by वेदिका on June 30, 2013 at 1:52am

 

सच ही तो ऐसे रिश्तो को औपचारिक के धागे से बांध के रखने की क्या जरुरत जो, कठिन समय में साथ देने के बजाये दूर चले जाये अपने व्यवसाय को तरक्की देने के लिए :((((((

रिश्ते अगर जबरदस्ती रखे जाये तो तार तार हो कर बिखरते है ,, बेहतर है की झूठ की गिरह खोल दी जाये 

 

आपकी रचना ने मर्म पर चोट की और रचना बांचते समय अपना प्रभाव रखा 

बहुत अच्छी काव्य रचना के लिए बधाई स्वीकारे! 

Comment by coontee mukerji on June 29, 2013 at 6:22pm

रिश्ता ..... 

किसी  के लिए चाँद है 

किसी के लिए ख्वाब है 

तो किसी के लिए कसक है 

किसी के लिए महक है 

रिश्ता .... 

बहता पानी है 

मानो तो अमृत है 

न मानो तो बहता पानी है.....रिश्ते का क्या अनोखा बयाँ है.

Comment by विजय मिश्र on June 29, 2013 at 5:35pm
रिसते-टीसते रिश्तों को रिश्ते का नाम न दें तो श्रेयष्कर .रिश्ते हृदय से बनें और इसी स्तर पर इसका निर्वाह हो तो सार्थक है अमोदजी .काव्यात्मकता में कहीं दोष नहीं . बधाई हो .
Comment by Shyam Narain Verma on June 29, 2013 at 4:19pm

बहुत ही सुंदर व मर्मस्पर्शी रचना....................

Comment by Ramkumar Nema on June 29, 2013 at 1:37pm

आदरणीय..अमोद जी,


आपने  रिश्तो के जो मायने बताये है "
हम भी रिश्तो से ही दामन को सजाए है ||

बहुत सुन्दर रचना.. बधाई 

Comment by बसंत नेमा on June 29, 2013 at 11:18am

बहुत सुन्दर रचना.. बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 29, 2013 at 10:59am
सुंदर व भावनाओ से ओत प्रोत रचना के लिऐ शुभकामनाऐ आदरणीय..अमोद जी, "रिश्ता ....

रेत है

जितनापकड़ो

सरकताजाताहै

रिश्ता तो रिसता है

रिश्ता .....

खूनकाहो

याहोतेरा,याहोमेरा

रिश्ता तो रिसता है ...."

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