For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खा खाकर मोटी हुई,जैसे मोटी भैंस !
मै दुबला होता गया ,मेरे धन पे ऐश !!

सुबह शाम गाली सुनूँ ,हरदम करती चीट !
धोबी का सोटा उठा ,अक्सर देती पीट !!

मै घर का नौकर बना ,झेलूँ बस उपहास !
रूठ विधाता भी गये,जाऊं किसके पास !!

लगे लंकिनी सा मुझे ,उसका भद्दा फेस !
दिन में कितनी बार वॊ,बदले अपना भेष !!

अब तो देखो हद हुई ,झेलूँ कितनी त्रास
घर आते सुनना पड़ा ,करना है उपवास !!

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1648

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on June 27, 2013 at 4:24pm

मेरा भी बिलकुल यही कहना है :))))))))))))))))))))))))))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 27, 2013 at 4:09pm

//ग़ज़ल का हिन्दीकरण करके लोग स-श  ट-ठ आदि तुकांत को हमकाफिया मान लेते हैं ... और इस पर अक्सर जानकारों को चुप हो जाते देखा है ... //

हिन्दी या उर्दू या किसी भाषा की ग़ज़ल है तो उसे उस भाषा की वर्णमाला को सम्मान देते हुए हर ग़ज़लकार को नियम निभाने ही होंगे. ग़ज़लकार यदि क़ाफ़िया के निर्धारण में दोषों के प्रति संवेदशील नहीं हुए तो यह उनकी अक्षमता ही मानी जायेगी. इस पर भी, जैसा कहा गया है कि  जानकार चुप रहते हैं,  तो यह जानकारों का किसी विशेष रचनाकार या ग़ज़लकार के प्रति व्यक्तिगत लगाव के कारण हो सक्ता है जो कि ग़ज़ल साहित्य के सर्वथा खिलाफ़ है.

लेकिन बात यहाँ छंदों की हो रही है. यहाँ इस तरह की बंदिश कमसे कम और को लेकर नहीं है. यदि इस तरह के किसी मंतव्य के प्रति आग्रही हुए तो हम जानबूझ कर गोस्वामी तुलसीदास या उन जैसों को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं. यदि कोई व्यक्तिगत रूप से इस तरह की तुकांतता को निभाना चाहता है तो वह उसका व्यक्तिगत मामला है, वह निभाये. लेकिन इसके प्रति आग्रही बन कर कोई ऐसा मंतव्य आरोपित न करे. जिसे जो उचित लगेगा वैसा लिखेगा. इस तरह की तुकांतता को ख़ारिज़ कर इसके बरअक्स किसी रचनाकार की काव्य क्षमता को आँकना-जाँचना उचित नहीं.

मेरा यही और इतना ही कहना है.

Comment by vijay nikore on June 27, 2013 at 3:57am

 

यह सब सच है तो आप सहानुभूति के पात्र हैं, राम जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by coontee mukerji on June 27, 2013 at 2:40am

भाई राम जी , कभी कभी रचनाकार अपनी रचना में अपना ही भविष्य लिख जाता है. सावधान!

Comment by वीनस केसरी on June 27, 2013 at 12:04am

//यह अवश्य है कि उर्दू ग़ज़ल से प्रभावित सदस्य तुरत ही लगे-लगे हाँ-हाँ करना शुरु कर दें.//

वैसे ग़ज़ल का हिन्दीकरण करके लोग स-श  ट-ठ आदि तुकांत को हमकाफिया मान लेते हैं ... और इस पर अक्सर जानकारों को चुप हो जाते देखा है ... 

खैर यहाँ इस पर विस्तार से चर्चा करना मुख्य बिंदु से भटक जाने का कारण हो सकता है ...

Comment by वीनस केसरी on June 27, 2013 at 12:01am

इस चर्चा के विषय में मेरा ज्ञान सीमित है इसलिए इस पर तो कुछ नहीं कह सकता 
हाँ ग़ज़ल के सन्दर्भ में विभिन्न प्रयोगधर्मियों से मेरा आग्रह भी सदैव यही रहता है जो सौरभ जी ने कहा ...

वैयक्तिक मंतव्य आरोपित नहीं होने चाहिये, बल्कि रचनाकर्म का हिस्सा बनें. 



सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2013 at 10:19pm

//...तो तुकांतता में इसका ध्यान रखना तार्किक लगता है //

तार्किक लगता है.   फिर वही.. .  व्यक्तिगत रूप से निभाइये न. इसे कोई सदस्य बलात् अच्छा या अवश्य कह कर अन्य सदस्य को प्रभावित करना क्यों चाहता है ? या, अपने कहे को आरोपित क्यों करना चाहता है ?

इस तथाकथित तार्किकता को अनावश्यक ही हम प्रश्न या उत्तर बना कर क्यों ज़ाहिर कर रहे हैं ? यह अवश्य है कि उर्दू ग़ज़ल से प्रभावित सदस्य तुरत ही लगे-लगे हाँ-हाँ करना शुरु कर दें. मैं अनावश्यक चर्चा को प्रश्रय देने के सदा विरुद्ध रहा हूँ.  यह मंच की गलत तस्वीर प्रस्तुत करता है.  वैयक्तिक मंतव्य आरोपित नहीं होने चाहिये, बल्कि रचनाकर्म का हिस्सा बनें. बस.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 26, 2013 at 10:12pm

स, श और को हम उच्चारित अलग अलग करते है तो तुकांतता में इसका ध्यान रखना तार्किक लगता है 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2013 at 10:10pm
//लेकिन ऐसा करना मुझे तो कम से कम रचनाकर्म में समझौता करना सा ही लगता है//
हाँ, यह आपको लगता है न ! यानि इस तरह का कोई मंतव्य आपका व्यक्तिगत मंतव्य हुआ न.. .

//हाँ ये ज़रूर स्पष्ट करूंगी कि अपनी इस वैयक्तिक सोच को मैं किसी पर आरोपित नहीं करना चाहती.. न ही ऐसी दुष्चेष्टा कभी की ही है....//
फिर भाई राम शिरोमणि से इस तरह का निवेदन किस श्रेणी में मानना चाहिये ? ... :-)))))

सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 26, 2013 at 9:45pm

आदरणीय सौरभ जी 

 और  या साथ में  की तुकांतता होती है या नहीं होती है ऐसा कोई नियम तो मैंने नहीं देखा है...ये समान गण के वर्णाक्षर हैं, इसलिए इनके उच्चारण में साम्यता है ये भी ज़रूर है... लेकिन ऐसा करना मुझे तो कम से कम रचनाकर्म में समझौता करना सा ही लगता है,

//इसे छंद विधान के साथ सप्रयास जोड़ना व्यक्तिगत मान्यता को आरोपित करना जैसी बात हो जायेगी//

हाँ ये ज़रूर स्पष्ट करूंगी  कि अपनी इस वैयक्तिक सोच को मैं किसी पर आरोपित नहीं करना चाहती न ही ऐसी दुष्चेष्टा कभी की ही है....

रचनाकार स्वविवेक से ही इन छोटी छोटी बातों पर ध्यान देते हैं और अपना कार्य करते हैं. ......(रचनाओं पर मेरी किसी भी राय को प्रामाणिक नियम कोई न मानने की भूल करे ये निवेदन भी साथ ही कर दूँ तो उचित होगा.....)

सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service