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क्या मैं..आकाश नहीँ छू सकती?

जब तक कि रुक नहीँ जाता
बेटियोँ के संग
भेदभाव का सिलसिला
मैँ पूंछती हूं..मैँ पूंछूंगी और पूंछती ही रहूंगी,
मैँ एक बेटी हूं
क्या बेटी होना कोई गुनाह है?
क्या मैँ माँ-बाप की
आशाओँ को
पूरा नही कर सकती?
क्या मैँ उनकी कसौटी पर
खरा नहीँ उतर सकती?
क्या मैँ वह नहीँ कर सकती..
जो एक बेटा करता है
माँ-बाप,भाई,बहन
और समाज के लिए?
क्या मैँ अपनी मेहनत से
इस बंजर जमीन को
हरा भरा नहीँ कर सकती?
क्या मैँ
किसी के जीवन मेँ
प्यार के रंग नहीँ भर सकती?
क्योँ बेटी को आज भी
बेटे के बराबर
नहीँ समझा जाता?
क्योँ आधुनिकता के
इस युग मेँ
एक बेटी को
मार दिया जाता है
जन्म से पहले ही बोझ समझकर?
मैँ फिर पूंछती हूं एक बार
क्या मैँ....आकाश नहीँ छू सकती?
¤¤¤¤¤¤
(मौलिक व अप्रकाशिता)

_आबिद अली मंसूरी

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Comment by Abid ali mansoori on June 15, 2013 at 8:07pm
आदरणीया मीना जी हार्दिक आभार इस सराहना के लिए!
Comment by Meena Pathak on June 15, 2013 at 6:47pm

बहुत सुन्दर रचना .. बधाई 

Comment by Abid ali mansoori on June 15, 2013 at 10:06am
हार्दिक आभार आदरणीय केवल प्रसाद जी!
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 15, 2013 at 9:38am

आ0 आविद भाई जी,   बहुत ही शानदार प्रस्तुति।  तहेदिल से हार्दिक बधाई स्वीकार करें।   सादर,

Comment by Abid ali mansoori on June 14, 2013 at 9:30am
Haardik abhaar aapka adarniya coontee ji..
Comment by coontee mukerji on June 14, 2013 at 12:55am

बहुत मार्मिक रचना , आँखें नम कर देने वाली .आबीद अलि  जी ./सादर

Comment by Abid ali mansoori on June 13, 2013 at 3:19pm
हार्दिक आभार आदरणीय विनीता जी!
Comment by Vinita Shukla on June 13, 2013 at 3:04pm

आज की परिस्थितियों में, एक बेटी का दर्द, सुंदर ढंग से बयां करती हुई प्रभावी रचना. बधाई.

Comment by Abid ali mansoori on June 13, 2013 at 1:52pm
Aadarniya vijayashree ji hardik abhar aur hardik vadhayi sundar rachana ke liye!
Comment by vijayashree on June 13, 2013 at 1:14pm

ना जाने वो  दिन कब आयेगा

जब बेटे बेटी का फ़र्क ना आँका जायेगा

 

इस भेदभाव को मिटाना होगा

बिटिया का भविष्य उज्जवल बनाना होगा  

 

विचारणीय विषय को कलमबद्ध करने पर हार्दिक बधाई

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