!!! सत्ता का सार !!!
सत्ता - सुशासन - सरकार
पेट्रोल - डीजल- गैस की मार
दर्द क्यों हम इसका झेलें
जिसके तन में हों पहिये चार
नेताओं की चलती है कार
काला - धन और भ्रस्टाचार
टूट - फूट और मरम्मत का कार्य
बस थोड़ा सा दंगा
और नर -संहार
उनकी कार में खूनी पेट्रोल
व्यभिचारी डीजल का शोर
बलात्कारी से हूटर चीखते
मंहगाई का पूरा काफिला ही संग चलता
ए.सी. ट्रेन - प्लेन का सुख
लेतें हैं चमचा- चापलूस- गद्दार
इनके पूत पालने में ही
फाड़ें चादर
होकर युवा करते यूनिवर्सिटी बेजार
शहर - गाँव पूरा बाजार
थू - थू करता सभ्य परिवार
पुलिस - प्रशासन. कानून सब
हो जाते हैं पंगु और लाचार
और तब पूरा समाज
हो जाता बीमार
बस यही है सत्ता का सार !!!
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपके स्नेह एवं प्रसंशा हेतु आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार। सादर,
आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी, आपके स्नेह एवं प्रसंशा हेतु हार्दिक आभार। सादर,
आदरणीय प्रदीप कुमार सिंह जी, आपके स्नेह एवं प्रसंशा हेतु हार्दिक आभार। सादर,
आदरणीय संदीप कुमार पटेल जी, आपके स्नेह, सुझाव एवं प्रसंशा हेतु हार्दिक आभार। सादर,
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी, आपके स्नेह व आशीष रूपी प्रसंशा हेतु हार्दिक आभार। सादर,
आज के शासन तंत्र पर अच्छा प्रहार किया है मन की कटुता को अच्छे से शब्दों में उतारा है बहुत- बहुत बधाई।
बहुत सही चित्रण
बधाईस्नेही प्रसाद जी
सादर
बहुत सुन्दर आदरणीय भाई !अपने तो सब पोल ही खोल दी !सादर
आदरणीय केवल जी सादर
आपकी यह रचना बहुत ही प्यारी लगी
या यूँ कहूँ मज़ा आ गया भाव संप्रेषण जोरदार हैं
कहीं कहीं
जैसे
लेतें हैं "चमचा" की जगह चमचे
इस तरह के सुधार आप कर लिया करें
बाकी बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें इस हक़ीकत बयानी हेतु
सादर
सत्ता का सार समझे, आप केवल प्रसाद,
इसका स्वाद चख रहे,व्यभिचारी आबाद |
दोषी इसको कर रहे, पूर्ण रूप बर्बाद |
भ्रष्टाचारी लूट कर, करे जेब आबाद
नित बढती महंगाई, जनता है बर्बाद | - यही है साता का सार -बधाई करे स्वीकार
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