मंच के सामने आठ दस लोग कुर्सियों पर बैठे थे। सफेद झक कुर्ता पायजामा पहने छरहरे बदन का एक युवक मंच पर खड़ा भाषण दे रहा था, ‘आज हमारे देश को भगत सिंह के आदर्शों की जरूरत है……..।‘ भाषण खत्म होने पर संचालक ने घोषणा की, ‘थोड़ी ही देर में सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रारम्भ होंगे।‘
कुछ देर बाद एक युवती रंग बिरंगी वेशभूषा में मंच पर आयी और उसने एक गीत पर नृत्य आरंभ कर दिया ‘……चिकनी चमेली……’
भीड़ धीरे धीरे बढ़ने लगी थी।
सीटियां बज रही थीं।
भगत सिंह शहीद हो चुके थे। चमेली महक रही थी।
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- बृजेश नीरज
Comment
अभी कल की ही बात है ... शंकराचार्य जी की कृति Vivekachudamani के सतसंग में हम केवल ५ लोग थे,
उसी शाम को फ़िल्मी संगीत गोष्ठी में सुना है लगभग ५०० लोग गए।
जब तक हम श्रेय को छोड़ कर प्रेय को अंगिकार करते रहेंगे,
वही होगा जो आपने लघु-कथा में कहा है।
विजय निकोर
आदर्शों की शहादत और चमेली की महक के इंगितों से समाज में व्याप्त वर्तमान दिशाहीनता को बहुत खूबसूरती से लघुकथा में व्यक्त किया है आ० बृजेश जी, हार्दिक बधाई इस लघुकथा पर.
आदरणीया राजेश कुमारी जी सत्य कहा आपने। आपका आभार!
ब्रजेश जी अफसोस होता है गुस्सा भी आता है आज हमारा देश बस नचनुओ का देश बनकर रह गया है बस भीड़ नाच पर ही जुड़ती है
इस लघु कथा पर बधाई आपको
आदरणीय सौरभ जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद!
भाई बृजेश जी, इस लघुकथा पर कहना कुछ नहीं, आजकी समझ और समझ की संवेदनहीनता पर मनन करने की आवश्यकता है.
इस प्रविष्टि हेतु बहुत-बहुत बधाई.
आदरणीय राज जी आपका आभार!
सत्य है !! बहुत अच्छे !! Neeraj ji
आदरणीय शुभ्रांशु जी आपका आभार!
वाह क्या बात है...ये कल्चर अब तो आम हो चुका है....
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