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मुल्क तो इनका मकां है साथियो

ना यहाँ है ना वहाँ है साथियो
आजकल इंसां कहाँ है साथियो

आम जनता डर रही है पुलिस से
चुप यहाँ सब की जबाँ है साथियो

पार्टी में हाथ है हाथी कमल
आदमी का क्या निशां है साथियो

लीडरों का एक्स-रे कर लीजिए
झूठ रग रग में रवाँ है साथियो

ये उठा दें रैंट पर या बेच दें
मुल्क तो इनका मकां है साथियो

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 14, 2010 at 8:36am
बेहतरीन ....क्या घुमा के पटखनी दी है आजकल के लीडरों को..
एकदम करारा तंज़|बधाई हो|
Comment by आशीष यादव on November 11, 2010 at 12:05am
waah, bahut khub
ये उठा दें रैंट पर या बेच दें
मुल्क तो इनका मकां है साथियो
Comment by विवेक मिश्र on November 10, 2010 at 8:43pm
लीडरों का एक्स-रे कराने वाली बात बड़ी सही लगी. दाद कबूल करें.
Comment by Ratnesh Raman Pathak on November 10, 2010 at 6:29pm
अरुण जी आपके इस प्रथम रचना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद्.
इस कविता को पढने के बाद यही लग रहा है की कवी ने बेहद अफ़सोस जताते हुए तथा देश के इस भ्रष्ट वातावरण से दुखित होकर इस कविता की रचना की है.
ये उठा दें रैंट पर या बेच दें
मुल्क तो इनका मकां है साथियो!
आपकी ये लाइन इस कविता में चार चाँद लगा रही है,
बहुत ही बढ़िया ....धन्यवाद्

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