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एक प्रयोग “चौपाई-त्रिभंगी” गीत

एक प्रयोग “चौपाई-त्रिभंगी” गीत

 

दृग सरिता मुख चन्द्र चकोरी, केश मेघ तन स्वर्ण किशोरी

कैसे करूँ कल्पना कोरी, होय नहीं समता भी थोरी

 

अधरों में रस भर, लाज शर्म धर, नैन झुकाए, मुस्काती

सकुचाती काया, लगती माया, दूर खड़ी हो, इठलाती

मन आह भरे है, चाह करे है, चंचल मन अस, उकसाती

हर रात जगे हम, भर भर कर दम, चैन नहीं है, दिन राती

 

अंतर्मन की जोरा जोरी, कहूँ दशा क्या तुमसे गोरी

दृग सरिता मुख चन्द्र चकोरी, केश मेघ तन स्वर्ण किशोरी

 

है प्रेम भरा मन, पुलकित योवन, नित अमृत सा, बरसाती

दृग गहरे काले, कर मतवाले, मद मदिरा सा, छलकाती

यूँ हँसती प्यारी, जग से न्यारी, पागल मन को, कर जाती

पुष्पित तन कोमल, देखूं पल पल, घडी नहीं वो, बिसराती

 

बात सुनो अब गोरी मोरी, जिस घर तुम वो होय तिजोरी

दृग सरिता मुख चन्द्र चकोरी, केश मेघ तन स्वर्ण किशोरी

 

मन बोल न पाता, है सकुचाता, कितना तुमसे, प्रेम करूँ

तुम रूठ न जाओ, दूर न जाओ, सोच सोच ये, बात डरूं

क्या तुम समझोगी, जान सकोगी, मेरे प्रेमी, इस मन को

जो मन आवारा, हो बेचारा , छोड़ चुका है इस तन को

 

मन ने बाँधी मन से डोरी, मिलो कभी तो चोरी चोरी

दृग सरिता मुख चन्द्र चकोरी, केश मेघ तन स्वर्ण किशोरी

 

  

संदीप पटेल “दीप”   

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Comment by Ashok Kumar Raktale on February 18, 2013 at 7:51am

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