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कोई दीप फिर तुम जला दो प्रिये

पथ मेरे ये अंधेरों में घिरने लगे

कोई दीप फिर तुम जला दो प्रिये

आँख को अब ये नींदें सताने लगीं

चाह कोई गगन की जगा दो प्रिये

 

फिर बनो लक्ष्य मेरा पुकारो मुझे

भर के मुझमें उमंगें संवारो मुझे

मैं नदी बनके दौड़ा चला आऊं फिर

बनके सागर जरा तुम पुकारो मुझे

ऐसे ठहरा हुआ कैसे जी पाऊंगा

कोई चाँद फिर तुम मँगा लो प्रिये

पथ मेरे ये अंधेरों में घिरने लगे

कोई दीप फिर तुम जला दो प्रिये

 

 

मुझमें भर दो अगन यज्ञ हो जाऊँगा

तुम बनो प्रेरणा पथ बना लाऊंगा

तुम कुसुम बन के कोई निमंत्रण तो दो

मैं भ्रमर का सा निश्चय भी ले आऊंगा

बस तुम्हारे लिए जो थी मुझमें कभी

वही आग फिर अब लगा दो प्रिये

पथ मेरे ये अंधेरों में घिरने लगे

कोई दीप फिर तुम जला दो प्रिये

  -पुष्यमित्र उपाध्याय

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Comment

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Comment by Dr.Ajay Khare on February 13, 2013 at 3:56pm

bah kya nivedan hai aapki kukar jaroor suni jayegi badhai 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 13, 2013 at 1:58pm

मुझमें भर दो अगन यज्ञ हो जाऊँगा
तुम बनो प्रेरणा पथ बना लाऊंगा
तुम कुसुम बन के कोई निमंत्रण तो दो
मैं भ्रमर का सा निश्चय भी ले आऊंगा
बस तुम्हारे लिए जो थी मुझमें कभी
वही आग फिर अब लगा दो प्रिये

ऐसी सोच को जीती हुई पंक्तियाँ अभिभूत करती हैं.  बधाई व शुभकामनाएँ. ..

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 13, 2013 at 12:01pm

वाह क्या बात है क्या निवेदन किया है अपनी प्रियतमा से बधाई हो 

कृपया ध्यान दे...

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