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धीरे धीरे पढ़ें -कोई सुन ना ले

मौलिक -अप्रकाशित

सत्तावन "जो-कर" रहे, जोड़ा बावन ताश ।

महल बनाया दनादन, "सदन" दहलता ख़ास ।

सदन दहलता ख़ास, किंग को नहला पंजा।

रानी दहला जैक, कसे हर रोज शिकंजा ।

धक्का इक्का खाय, हिले नहिं पाया-पत्ता ।

खड़ा ताश का महल, शक्तिशाली कुल सत्ता ।।

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Comment by रविकर on February 13, 2013 at 8:37am

AABHAAR AADARNIY ARUN JI

AABHAAR AADARNIY SOURABH Sir .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 12, 2013 at 10:58pm

आदरणीय रविकरजी, आपकी नई कुण्डलिया भी मन मोह रही है. ताश के पत्तों के खेल की तरह यह राजनीति कितने रूपों में हमारे सामने है इसका बेहतर मुज़ाहिरा हुआ है.

भाई अरुण अभिनव जी ने आपकी इस कुण्डलिया केलिए सही शब्द का प्रयोग किया है -- तिलिस्मी रचना !

बधाई

Comment by Abhinav Arun on February 12, 2013 at 3:29pm

बड़ी रहस्मयी तिलस्मी रचना है श्री रविकर जी समझते समझते समझ आएगी आपने अरसे बाद ज्ञान चक्षु खोलने की अपेक्षा की है प्रयास करता हूँ !! इस सांकेतिक जटिल रचना के लिए बधाई देता हूँ !!

Comment by रविकर on February 12, 2013 at 3:24pm

हड़बड़ा कर पोस्ट करने की आदत है, तैयार होते ही पोस्ट कर दी थी-
-कई करेक्सन हुवे हैं बाद में -

आभार आदरणीय |

अभी इस रूप में है-

सत्तावन जो कर रहे, जोड़ा बावन ताश ।
चौका (4) दे जन-पथ महल, *अट्ठा(8) पट्ठा पास ।

सत्तावन=ग्रुप ऑफ़ मिनिस, अट्ठा= कूट-नैतिक सलाह---
पट्ठा = जवान-लड़का सिंह इज किंग

अट्ठा(8) पट्ठा पास, किंग(K) पंजा(5) से दहला(10)।
रानी(Q)नहला(9)जैक(J), देख छक्का(6) मन बहला ।

नहला=ताजपोशी के लिए नहलाना

दुक्की(2) तिग्गी(3)ट्रम्प, हिला ना *पाया-पत्ता ।
खड़ा ताश का महल, चढ़े इक्के(A) पे सत्ता (7)।।

*खम्भा


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 11, 2013 at 11:52pm

आदरणीय रविकर भाईजी, शब्दों की बाज़ीग़री और उसका रोमांच ... . मन झूम-झूम उठा.

बधाई-बधाई !!!

Comment by रविकर on February 11, 2013 at 10:56am

आभार आदरणीय |
आभार आदरेया ||

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 10, 2013 at 10:11pm

व्यंगात्मक कुंडलियाँ छंद में सात-बन, जो-कर,नहल-पंजा पर रानी दहला का जैक जैसे 

शब्दों का बेहतरीन प्रयोग बेहद पसंद आया, इससे कुण्डलियाँ रोचक बन पड़े है, हार्दिक बधाई रविकर जी 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 9, 2013 at 6:02pm

ताश का महल एक दिन तो गिरेगा वो दिन भी दूर् नही रविकर भाई आपकी इस कुंडली से संसद जरूर हिल जायेगी 

Comment by रविकर on February 9, 2013 at 4:48pm

आभार आदरणीय डाक्टर साहब ।

एक बार फिर से-देखिये

सत्तावन "जो-कर" रहे, जोड़ा बावन ताश ।
महल बनाया दनादन, "सदन" दहलता ख़ास ।

सदन दहलता ख़ास, किंग को दहला पंजा।
रानी *नहला जैक, कसें तिग्गियाँ शिकंजा ।

*ताजपोशी के लिए

इक्का-दुक्की झड़प, हिला नहिं पाया-पत्ता ।

खड़ा ताश का महल, दिखे बलशाली सत्ता ।।

Comment by Dr.Ajay Khare on February 9, 2013 at 4:33pm

ravikar ji sabdo ki aapne flace sikha di badhai

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