मौलिक
अप्रकाशित
लगा ले मीडिया अटकल, बढ़े टी आर पी चैनल ।
जरा आतंक फैलाओ, दिखाओ तो तनिक छल बल ।।
फटे बम लोग मर जाएँ, भुनायें चीख सारे दल ।
धमाके की खबर तो थी, कहे दिल्ली बताया कल ॥
हुआ है खून सादा जब, नहीं कोई दिखे खटमल ।
घुटाले रोज हो जाते, मिले कोई नहीं जिंदल ।।
कहीं दोषी बचें ना छल, अगर सत्ता करे बल-बल ।
नहीं आश्वस्त हो जाना, नहीं होनी कहीं हलचल ॥
जवानी धर्म से भटके, हुआ वह शर्तिया "भटकल" ।
मरे जब लोग मेले में, उड़ाओ रेल मत नक्सल ॥
Comment
सार्थक कटाक्ष करती हुई बहुत बढ़िया प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई
सामयिक रचना आदरणीय रविकर जी , बधाई स्वीकारें ।
जवानी धर्म से भटके, हुआ वह शर्तिया "भटकल" ।
मरे जब लोग मेले में, उड़ाओ रेल मत नक्सल ॥
सुन्दर अभिव्यक्ति.......
क्या सुन्दर बात कही आपने....
हार्दिक बधाई।।।।।
वाह क्या बात है! बहुत सुन्दर!
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