मौलिक -अप्रकाशित
सत्तावन "जो-कर" रहे, जोड़ा बावन ताश ।
महल बनाया दनादन, "सदन" दहलता ख़ास ।
सदन दहलता ख़ास, किंग को नहला पंजा।
रानी दहला जैक, कसे हर रोज शिकंजा ।
धक्का इक्का खाय, हिले नहिं पाया-पत्ता ।
खड़ा ताश का महल, शक्तिशाली कुल सत्ता ।।
Comment
AABHAAR AADARNIY ARUN JI
AABHAAR AADARNIY SOURABH Sir .
आदरणीय रविकरजी, आपकी नई कुण्डलिया भी मन मोह रही है. ताश के पत्तों के खेल की तरह यह राजनीति कितने रूपों में हमारे सामने है इसका बेहतर मुज़ाहिरा हुआ है.
भाई अरुण अभिनव जी ने आपकी इस कुण्डलिया केलिए सही शब्द का प्रयोग किया है -- तिलिस्मी रचना !
बधाई
बड़ी रहस्मयी तिलस्मी रचना है श्री रविकर जी समझते समझते समझ आएगी आपने अरसे बाद ज्ञान चक्षु खोलने की अपेक्षा की है प्रयास करता हूँ !! इस सांकेतिक जटिल रचना के लिए बधाई देता हूँ !!
हड़बड़ा कर पोस्ट करने की आदत है, तैयार होते ही पोस्ट कर दी थी-
-कई करेक्सन हुवे हैं बाद में -
आभार आदरणीय |
अभी इस रूप में है-
सत्तावन जो कर रहे, जोड़ा बावन ताश ।
चौका (4) दे जन-पथ महल, *अट्ठा(8) पट्ठा पास ।
सत्तावन=ग्रुप ऑफ़ मिनिस, अट्ठा= कूट-नैतिक सलाह---
पट्ठा = जवान-लड़का सिंह इज किंग
अट्ठा(8) पट्ठा पास, किंग(K) पंजा(5) से दहला(10)।
रानी(Q)नहला(9)जैक(J), देख छक्का(6) मन बहला ।
नहला=ताजपोशी के लिए नहलाना
दुक्की(2) तिग्गी(3)ट्रम्प, हिला ना *पाया-पत्ता ।
खड़ा ताश का महल, चढ़े इक्के(A) पे सत्ता (7)।।
*खम्भा
आदरणीय रविकर भाईजी, शब्दों की बाज़ीग़री और उसका रोमांच ... . मन झूम-झूम उठा.
बधाई-बधाई !!!
आभार आदरणीय |
आभार आदरेया ||
व्यंगात्मक कुंडलियाँ छंद में सात-बन, जो-कर,नहल-पंजा पर रानी दहला का जैक जैसे
ताश का महल एक दिन तो गिरेगा वो दिन भी दूर् नही रविकर भाई आपकी इस कुंडली से संसद जरूर हिल जायेगी
आभार आदरणीय डाक्टर साहब ।
एक बार फिर से-देखिये
सत्तावन "जो-कर" रहे, जोड़ा बावन ताश ।
महल बनाया दनादन, "सदन" दहलता ख़ास ।
सदन दहलता ख़ास, किंग को दहला पंजा।
रानी *नहला जैक, कसें तिग्गियाँ शिकंजा ।
*ताजपोशी के लिए
इक्का-दुक्की झड़प, हिला नहिं पाया-पत्ता ।
खड़ा ताश का महल, दिखे बलशाली सत्ता ।।
ravikar ji sabdo ki aapne flace sikha di badhai
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