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इक प्रयोग "पञ्च चामर ग़ज़ल"

इक प्रयोग "पञ्च चामर ग़ज़ल"

बुरा न बोलिए उसे अगर कठिन गुजर हुआ
सिवाय वक़्त के बता न कौन हमसफ़र हुआ

तलाशते रहा जिसे रखे मिलन कि तिश्नगी
सुनी नहीं सदा अजीज यार बे-खबर हुआ

बदल नहीं सके उसे कहा सनम जिसे कभी
सनम रहा सनम बने न प्यार का असर हुआ

बढीं तमाम गर्दिशें चली हवा गुमान की
बुझा चिराग प्यार का निजाम बेअसर हुआ

गुरूर जिस्म पे कभी न कीजिये हुजूर यूँ
उसूल सुन हयात का मनुज नहीं अमर हुआ

न राह दिख रही मुझे न "दीप" मंजिलें दिखीं
मगर रुके न आज तक तलाश ही सफ़र हुआ


 संदीप पटेल "दीप"

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Comment

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Comment by charnjit mann on February 8, 2013 at 1:50am

khoob;yeh "panch chaamar" kyaa hota hai?


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 7, 2013 at 11:53pm

ऐसा प्रयोग नया नहीं है,भाई.. .  इस तरह का बह्र तो ऑलरेडी है..

वीनस भाई.. क्या कहते हैं ?!!

Comment by वीनस केसरी on February 7, 2013 at 11:50pm

बहुत खूब
एक और प्रयोग ....
शानदार 

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