For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते

आदरणीय गुरुजनों, मित्रों एवं पाठकों यह ग़ज़ल मैंने तरही मुशायरा अंक -३१, हेतु लिखी थी परन्तु समय न मिलने के कारण न तो प्रस्तुत कर सका और नहीं है मुशायरे में अच्छी तरह से भाग ले सका. क्षमा प्रार्थी हूँ सादर

बिना तेरे दिन हैं जुदाई के खलते,
कटे रात तन्हा टहलते - टहलते,

समय ने चली चाल ऐसी की प्राणी,
बदलता गया है बदलते - बदलते,

गिरे जो नज़र से फिसल के जरा भी,
उमर जाए फिर तो निकलते-निकलते,

किया शक हमेशा मेरी दिल्लगी पे,
यकीं जब हुआ रह गए हाँथ मलते,

भरम ही सही यार तेरी वफ़ा का,
जिए जा रहा हूँ ये आदत के चलते,

गुनाहों का मालिक खुदा बन गया है,
भलों को नहीं हैं भले काम फलते,

दवा से दुआ से नहीं तो नशे से,
बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 705

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on February 1, 2013 at 5:12pm

आदरेया उपासना जी सराहने हेतु धन्यवाद सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on February 1, 2013 at 5:12pm

आदरणीय अशोक सर ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरे लिए सुखद है आभार सर

Comment by upasna siag on February 1, 2013 at 5:05pm

किया शक हमेशा मेरी दिल्लगी पे,
यकीं जब हुआ रह गए हाँथ मलते,.....बहुत सुन्दर  

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 31, 2013 at 10:25pm

भाई अरुण जी सादर,मुशायरे में नही ब्लॉग पर सही, सुन्दर गजल प्रस्तुत की है.बधाई स्वीकारें.

समय ने चली चाल ऐसी की प्राणी,
बदलता गया है बदलते - बदलते,..............बिलकुल सही है वक्त ने काफी कुछ बदल दिया है.

गिरे जो नज़र से फिसल के जरा भी,
उमर जाए फिर तो निकलते-निकलते,...........बहुत खूब.

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 31, 2013 at 12:02pm

आदरणीय गुरुदेव श्री प्रणाम, आपका शिष्य बनने की भरपूर कोशिश कर रहा हूँ, यूँ ही जीवन के इस पथ पर आपके आशीष और सहयोग की आकांक्षा सदैव रहेगी, आपके मार्गदर्शन से कुछ अलग और अच्छा लिखने की ईच्छा परस्पर बनी रहती है, धीरे-धीरे कोशिश में हूँ की आपका लायक शिष्य बन सकूँ. सादर.

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 31, 2013 at 11:58am

आभार पाठक साहब

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 31, 2013 at 11:57am

मित्रवर संदीप जी आपने टिपण्णी के रूप में शे'र की पेशकश कर दिल खुश कर दिया. आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 30, 2013 at 10:17pm

जो शेर आपकी ग़ज़ल में कोट करने लायक या कुछ कहने लायक हुए हैं, उन्हें पुनर्प्रस्तुत कर रहा हूँ -

बिना तेरे दिन हैं जुदाई के खलते,
कटे रात तन्हा टहलते - टहलते,

बढिया मतला हुआ है, अरुन जी. एक मनोभाव और मनोदशा विशेष का बढिया वर्णन हुआ है. 

किया शक हमेशा मेरी दिल्लगी पे,
यकीं जब हुआ रह गए हाँथ मलते,

यह तो आप भी अवश्य जानते होंगे कि दिल्लगी और दिल की लगी में अंतर हुआ करता है. यहाँ सानी दिल की लगी की बात करता दिखता है.

भरम ही सही यार तेरी वफ़ा का,
जिए जा रहा हूँ ये आदत के चलते,

सानी को और कसा जा सकता था.

गुनाहों का मालिक खुदा बन गया है,
भलों को नहीं हैं भले काम फलते,

यह शेर कुछ जमा नहीं भाई. इसे थोड़ा स्पष्ट किया होता या मैं ही नहीं समझ पा रहा हूँ. उला और सानी में संबंध नहीं बन पा रहा.

दवा से दुआ से नहीं तो नशे से,
बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते

अरे बाप रे .. . दिल को बहलाने के लिए गिना गया तीसरा विंदु तो बड़ा खतरनाक है भाई.. .

Comment by ram shiromani pathak on January 30, 2013 at 9:49pm

सुंदर रचना 'अनंत जी' 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 30, 2013 at 6:24pm

क्या बात है ,,,,,,,,,,,,,,,,,,

एक शेर मेरी और से भी

खुमार उतर ही नहीं रहा है

इधर भी उधर भी चले वो सँभलते

मगर यूँ सदा ही रहे हाथ मलते

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service