For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अदना सा आदमी (राजेश कुमार झा)

एक फसली जमीन को
तीन फसली करने का हुनर.....
धर्म के अंकुश तले
आकुल उड़ान की कला......
अभिशप्त़ कामनाओं को
ममी बनाने का शिल्प.......
कहां जानता है
एक अदना सा आदमी ?

वह जानता है
ताप, पसीना, थकान
विषाद, उत्पीड़न
और उससे उपजी
तटस्थता
जिसको उसने नहीं चुना,

वह जानता है
टीस, चुभन, दर्द, मरण
और इन्हें समेटकर
हो जाता है एकदिन
छंदमय, मनोमय

चाहिए सहारा उसे
वृषभ कंधों,
सबल हाथों का
ताकि
वह भी हो सके
छंदमुक्त,  निर्बंध
अरुप, आकंठ

राजेश कुमार झा (मौलिक रचना)

Views: 559

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 16, 2013 at 10:32am

आदरणीय राजेश झा जी, 

आपकी रचना का भाव कथ्य प्रवाह सब बेहद सुन्दर है, शब्द भी अभिव्यक्ति में संयत हैं.

पर 

टीस, चुभन, दर्द, मरण
और इन्हें समेटकर
हो जाता है एकदिन
छंदमय, मनोमय.....इस पर मेरी सहमति नहीं बन पा रही है. कुछ भी कह ले, पर छंदमय होना तो सुर, लय, ताल, भाव, अलंकार सबका एक मुग्धकारी संयोजन होता है  अब हम इसे दर्द चुभन तीस मरण के दमघोंट देने वाले बंधन का बिम्ब कैसे स्वीकार करें.

शुभेच्छा.

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 16, 2013 at 9:10am

आदरणीय राजेश कुमार झा जी सादर, सुन्दर रचना मेहनतकश सरल चरित्र इंसान को कहाँ भाग्य की आस. मगर जब भाग्य साथ हो तो फिर क्या बात. बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 16, 2013 at 8:55am

एक साधारण आदमी एक छोटा किसान कहाँ ऊँची उड़ान भर सकता है ,इस जीवन अंतर को क्या ख़ूबसूरती से शब्दबद्ध किया है आपने छंद बद्ध और छंद मुक्तता का बिम्ब बखूबी प्रयोग किया बहुत बधाई इस मौलिक रचना हेतु 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 15, 2013 at 11:47pm

पंक्ति-पंक्ति रसती जाती है, मगर आप्लावित होने के स्थान पर मन बिंधता जाता है. अकुशल जन की विवशता और वेदना को खूब पकड़ा है आपने, भाई राजेश जी.  सर्वोपरि, अकुशल जन को छंदमय और कुशल जन को छंदमुक्त संज्ञा से इंगित किया जाना एकदम से चौंका गया. आपकी प्रयोगधर्मिता कमाल है. सही है अकुशल का विवश हो बंध कर जीना और कौशल्य का उन्मुक्त और निर्बंध जीना समझ में भी आता है.

देख रहा हूँ, आपकी लगभग हर रचना कुछ न कुछ विशेष बोल जाया करती है.. और हम जैसे पाठक देर तक उसकी अनुगूँज से झंकृत और रोमांचित रहते हैं.

बधाई इस ’छंदमुक्तता’ के लिए.. .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service