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छोटू है वह
होटल में बर्तन धोता है ...
सुबह-शाम भोजन पाने को
मालिक की झिडकी सहता है ...

गोरा है...पर हाथ-पाँव में मैल जमा है..
स्नान करे कब?बहुत व्यस्त है ...
हाथ-पैर-मुंह तक धोने का होश नहीं है .

"छोटू",मैंने एक दिन पूंछा उससे,
"स्कूल जाओगे?"
"अभी गया था..चाय बाँट कर आया हूँ मै"
बोला मुझसे,"फिर जाना है ...वापस जूंठे ग्लास उठाने.."
"नहीं...टांग कर बस्ता पीछे,
जाओगे क्या ?"
"किसका बस्ता ...कब जाना है ?"
अभी नहीं ..मुझको होटल में
अभी ढेर बर्तन धोना है ...
भूख लगी है ..
बर्तन धो कर थोडा सा खाना खाना है .
एक दिवस उसके गालों में छपी दिखीं
दो चार उंगलियाँ ...
पूंछा तो वह बिलख पड़ा
मालिक को देने लगा गालियाँ ...
"छोटू ! तुम गाली देते हो
.....बुरी बात है."
वह बोला ,"लेकिन...मेरी बस यही औकात है ?"

आज एक कप टूटा उससे,
तो उसने हैं थप्पड़ खाए
तोड़ रहे जो उसका बचपन
सजा उन्हें क्या मिले ? बताएं?


........डॉ.ब्रिजेश कुमार त्रिपाठी

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Comment

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Comment by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on October 26, 2010 at 11:20pm
jnb adab qubool farmayen buht achchi nazm tahreer farmai hai qabil e mubarak bad hain aap.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 26, 2010 at 6:41pm
बहुत ही बेहतरीन कृति, समाज के दुसरे चेहरे पर झन्नाटेदार तमाचा, उसके बाद भी हम कहते है की सभ्य है, यह दिखावा नहीं तो क्या है | इस सत्य को भाषा देने के लिये धन्यवाद आपका डॉ. साहब,
कुछ दिन पहले मैने भी OBO पर कुछ इसी विषय पर एक कविता लिखा था, एक नजर डालना चाहेंगे |
http://www.openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:6950

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