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मुक्तक--हृदय की तरल अग्नि..

............................................................................................................

हृदय की तरल अग्नि रचती है जीवन

यहीं जन्म लेते हैं वियाग और मधुवन

क्षमा और प्रतिशोध की कैसी माया,

हृदय नभ सो उत्पन्न हो करते नर्तन।

                                     सूबे सिहं सुजान

11.11.12

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Comment by सूबे सिंह सुजान on November 12, 2012 at 10:16pm

फूल सिंह जी, आपको भी व आपके परिवार को सधन्यवाद दीपावली की शुभकामनायें।

Comment by PHOOL SINGH on November 12, 2012 at 1:10pm

सुबे जी प्रणाम.......

सुंदर अतिसुंदर भावपूर्ण रचना......"सपरिवार सहित आपको शुभ दीपावली"

फूल सिंह

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