शाम जन्नत हुई सहर जन्नत
आप आये हुआ ये घर जन्नत
जो पड़े हैं कदम तुम्हारे यूँ
हो गया है मेरा शहर जन्नत
राह मुश्किल भरी रही लेकिन
आपके साथ था सफ़र जन्नत
ख्वाब क्या और क्या हकीकत में
नूर देखा हुई नज़र जन्नत
'दीप' वीरां लगा जहाँ तुझ बिन
इश्क की याद थी मगर जन्नत
संदीप पटेल "दीप"
Comment
आदरणीय हरविंदर जी सादर
आपको ग़ज़ल पसंद आई और आपकी दाद मिली
इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद सहित सादर आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
सुन्दर रचना मित्र संदीप जी.......बधाई स्वीकारें..........
अच्छी प्रस्तुति दीप जी! क्या कहन है वाह-वा! ! :-)
मक़ते के उला की तक़तीअ कर लें मात्रा गड़बड़ है!
'दीप वीरां लगा जहाँ तुझ बिन' या 'दीप वीरां लगा ये जग तुम बिन' से बात बन जाएगी! हार्दिक बधाईयां..!!
बहुत खूब बहुत खूब संदीप जी आपकी गज़लें तो कमाल कर रहीं हैं ....सभी अश'आर माशाल्लाह
मुबारकबाद .......
जो पड़े हैं कदम तुम्हारे यूँ
हो गया है मेरा शहर जन्नत
Behad Khoobsurat Deep Sahab..
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