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तब ध्यान करो प्रकृति की तरफ - ईश्वर की परम सुकृति की तरफ.....

चहुँ ओर दिखे अंधियारा जब
सूझे न कहीं गलियारा जब,
जब दुखों से घिर जाओ तुम
जब चैन कहीं ना पाओ तुम...

मन व्याकुल सा - तन व्याकुल सा
जीवन ही लगे शोकाकुल सा,
कोई मीत न हो - कोई प्रीत न हो
लगता जैसे कोई ईश न हो....

तब ध्यान करो प्रकृति की तरफ
ईश्वर की परम सुकृति की तरफ,
देखो तो भला सागर की लहर
उठती - गिरती जाती है ठहर...

अनुभव तो करो शीतलता का
पुरवाई की कोमलता का,
तुम नयन रंगो हरियाली से
पुष्पों की सुगन्धित लाली से....

तुम गान सुनो तो कोयल का
बहती सरिता की कलकल का,
पंछी करते क्या बात सुनो
कहता है क्या आकाश सुनो....

निकलोगे निराशा के तम से
निकलो तो भला अपने तन से,
है आस प्रकाश भरा जग में
रंग लो हर क्षण इसके रंग में....

जो बीत गया सो बीत गया
तम से निकला वो जीत गया,
उस जीत का तुम अनुभव तो करो
अनुभव तो करो - अनुभव तो करो...

- VISHAAL CHARCHCHIT

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Comment

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Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 13, 2012 at 3:00pm

धन्यवाद प्रिय विशाल जी, हमारे ओ बी ओ पर सभी सम्मानित सदस्यों के नाम फेसबुक व आर्कुट की तरह कट-पेस्ट न करके उन्हें सम्मानजनक तरीके से हिन्दी में टाइप करने की ही परम्परा है ! सस्नेह 

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 13, 2012 at 2:56pm

आपका ह्रदय से आभारी एवं इस स्नेह सदैव आकांक्षी हूँ  Ambarish भाई जी !!!!

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 13, 2012 at 2:53pm

उत्तम प्रवाहयुक्त यह गेय रचना स्वयं में अत्यंत सार्थक सन्देश समाहित किये हुए हैं .....इस हेतु हमारी ओर से साधुवाद....सस्नेह  

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 13, 2012 at 2:45pm

आपकी शुभकामनायें - आपका मार्गदर्शन मेरे लिए किसी स्वास्थ्यवर्धक औषधि से कम नहीं Saurabh सर......नमन !!!

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 13, 2012 at 2:43pm

माय सिस द ग्रेट  Kiran तुम्हारा स्नेह - तुम्हारी प्रेरणा मेरे लिए विशेष स्फूर्तिदायी है !!! 

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 13, 2012 at 2:41pm

seema  दीदी.......आपको - आपके स्नेह को प्रणाम करता हूँ !!! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 13, 2012 at 2:24pm

सकारात्मक नोट के साथ इस गेय रचना का अंत अभिभूत कर गया, भाई विशालजी.

हार्दिक शुभकामनाएँ .. .

Comment by Kiran Arya on September 13, 2012 at 1:50pm

जो बीत गया सो बीत गया
तम से निकला वो जीत गया,
उस जीत का तुम अनुभव तो करो
अनुभव तो करो - अनुभव तो करो......वाह भाई मेरे.......
जिसको है ये भान हुआ उसने ही तो जग पाया है
वर्ना तो बाकी सब आती जाती सी माया है.........बहुत गौरान्वित महसूस कर रही हूँ आज मैं बहुत ही सुंदर कृति दिल जीत लिया तुने आज............जियो................:))

Comment by seema agrawal on September 10, 2012 at 4:38pm

 अनुभव तो करो शीतलता का
पुरवाई की कोमलता का,
तुम नयन रंगो हरियाली से
पुष्पों की सुगन्धित लाली से.........वाह बहुत खूबसूरत विषय और उसको अभिव्यक्त करती आपकी रचना बस नदी सा प्रवाह लगा एक बार में पूरी कविता पढ़ गयी और रम गयी आपके कथन में 
सच में दुनियाँ में अगर कोई अप्रतिम जादूगर है तो वो है प्रकृति.... रंग अलंकार विज्ञान कविता सम्मोहन खुशी दुःख पीड़ा उल्लास क्या नहीं है इस जादूगर की झोली में  ........... यूँ ही लिखते रहिये

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