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गज़ल:उसकी हद उसको..

उसकी हद उसको बताऊंगा ज़रूर,
बाण शब्दों के चलाऊंगा ज़रूर.

इस घुटन में सांस भी चलती नहीं,
सुरंग बारूदी लगाऊंगा ज़रूर.

यह व्यवस्था एक रूठी प्रेयसी,
सौत इसकी आज लाऊंगा ज़रूर.

सच के सारे धर्म काफिर हो गए,
झूठ का मक्का बनाऊंगा ज़रूर.

इस शहर में रोशनी कुछ तंग है,
इसलिए खुद को जलाऊंगा ज़रूर.

आस्था के यम नियम थोथे हुए,
रक्त की रिश्वत खिलाऊंगा ज़रूर.

आख़री इंसान क्यों मायूस है ,
आदमी का हक दिलाऊंगा ज़रूर.

सूलियों से आज उतरा है येसु,
धूल माथे से लगाऊंगा ज़रूर.

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on October 11, 2010 at 12:56pm
थोड़ी बगावती गज़ल है.अच्छी लगी? शुक्रिया.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 11, 2010 at 9:57am
आस्था के यम नियम थोथे हुए,
रक्त की रिश्वत खिलाऊंगा ज़रूर.

वाह वाह वाह, बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल, एक एक शे'र मोतियों की मानिंद चमक रहे है , जबरदस्त , बेहतरीन अभिव्यक्ति, दाद देता हूँ मैं,

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