सारे रिश्ते देह के, मन का केवल यार
यारी जब से हो गई , जीवन है गुलज़ार
मन ने मन से कर लिया आजीवन अनुबन्ध
तेरी मेरी मित्रता स्नेहसिक्त सम्बन्ध
मित्र सरीखा कौन है, इस दुनिया में मर्द
बाँट सके जो दर्द को बन कर के हमदर्द
मीत बनो तो यूँ बनो, जैसे शिव और राम
इक दूजे का रात दिन, जपे निरन्तर नाम
मेरी हर शुभकामना, फले तुझे ऐ यार
यश धन बल आरोग्य से, दमके घर संसार
चाहे दुःख का रुदन हो, चाहे सुख के गीत
रहना मेरे साथ में, हर दम मेरे मीत
-अलबेला खत्री
Comment
हा हा हा हा .....वाह वाह अशोक रक्ताले जी,,,,,,,,,,जवाब नहीं आपका ...
वाह.....आज तो सुबह सुबह ही मज़ा आ गया
धन्यवाद !
धन्यवाद सतीश मापतपुरी जी
बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय अलबेला जी
सादर,
मीत बनो तो यूँ बनो, जैसे शिव और राम
इक दूजे का रात दिन, जपे निरन्तर नाम
वाह! लाख टके कि बात कह दी आपने अपने दोहों में. मित्रता बंधन स्वीकार करें.हार्दिक बधाई.
घर में ऐसा मित्र हैं,सदा निभाता फर्ज/
फरमाइश ऐसी करे, चुका रहा हूँ कर्ज//
कार्यालय जा कर करूँ, अधुरे उनके काम/
अलबेला जी जब कहें, तब लूँ उनका नाम//
मीत बनो तो यूँ बनो, जैसे शिव और राम
इक दूजे का रात दिन, जपे निरन्तर नाम
क्या बात है खत्री साहेब ...... मित्र और मित्रता पर आपके ख्याल का मैं कायल हो गया हूँ ... बधाई मित्रवर
वाह भाई अरुण निगम जी..........
गज़ब कर दिया .......
बहुत खूब
आपके पहले दोहे पर.....................
रिश्ते नाते रक्त से,किंतु मित्र अनुरक्त |
मन की सुंदरता हुई, दोहों में अभिव्यक्त || अलबेला sssssssss जी , दोहों में अभिव्यक्त
अपने दोहे पेल दूँ, इस अवसर पर मित्र |
अलबेला हैं आप तो,हम भी जरा विचित्र || अलबेला sssssssss जी ,हम भी जरा विचित्र
आपके दूसरे दोहे पर.......
स्टैम्प ड्यूटी ना लगे, यह ऐसा अनुबंध |
और न चौदह फरवरी, लगे कहीं प्रतिबंध || अलबेला sssssssss जी ,लगे कहीं प्रतिबंध
आपके तीसरे दोहे पर...........
कृष्ण सरीखा मित्र हो, बनूँ सुदामा यार |
चाँवल लेकर पोटली, जाऊँ उसके द्वार || अलबेला sssssssss जी ,जाऊँ उसके द्वार
आपके चौथे दोहे पर........
मित्र बनो तो यूँ बनो, ज्यों दुर्योधन कर्ण |
आड़े आया ही नहीं , जाति, वर्ग या वर्ण || अलबेला sssssssss जी ,जाति, वर्ग या वर्ण
आपके पाँचवे दोहे पर.......
मेरी भी शुभकामना, आज समर्पित मीत |
जीवन भर गाते रहो , मधुर प्रेम के गीत || अलबेला sssssssss जी ,मधुर प्रेम के गीत
आपके छठवें दोहे पर...........
बँटवारा करलें जरा, सुख तुम रख लो यार |
दुख लेकर मैं तो चला , ना झंझट तकरार || अलबेला sssssssss जी ,ना झंझट तकरार
मानसून ऑफर में लो, छ: के सँग इक मुफ्त |
इस मौसम में बैठिये , कहाँ हो गये लुप्त || अलबेला sssssssss जी ,कहाँ हो गये लुप्त
फ्रेंडशिप का फेस्टिव्हल , शिप में बैठे फ्रेंड |
ऐसे क्यों घबरा रहे , ज्यों कोई अनट्रेंड || अलबेला sssssssss जी ,ज्यों कोई अनट्रेंड
शिप ना डूबेगी कभी , उतरेगी यह पार |
ओबीओ की मित्र गण,सबकी जय जयकार || अलबेला sssssssss जी ,सबकी जय जयकार
बुरा न मानो, फ्रेंडशिप डे है..ssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssssss
ओबीओ के सभी मित्रों को मित्रता - दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.........
प्रिय मित्र ! मैंने ये कब कहा कि महिला पक्की मित्र नहीं हो सकती ? बल्कि मेरा अनुभव तो यही कहता है कि पुरुषों की अपेक्षा महिला ज़्यादा पक्की मित्र साबित होती है
सादर
बहुत सुन्दर दोहे रचे हैं अलबेला भैया.......बधाई स्वीकारें.....लेकिन पक्की मित्र तो औरत भी हो सकती है....अब उन्हें नाराज क्यों कर रहे हैं......
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