वो ख़्वाब उज़ागर क्यूँ किये हमने
सौ दर्द ज़िगर को क्यूँ दिए हमने||
जब करनी थी बातें कई हज़ार
वो लब चुपके से क्यूँ सिये हमने||
ख़्वाब बुनते रहे वो ही गलीचा
तलवे ये जख्मी क्यूँ किये हमने ||
ता उम्र करते रहे उन से वफ़ा
ये जफ़ा के घूँट क्यूँ पिए हमने ||
दे के जहान भर की दुआ उनको
मिटा दिए सुख के क्यूँ ठिये हमने
अश्क तो पलकों में ज़ब्त हो जाते
ये सब हथेली पे क्यूँ लिए हमने ||
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Comment
सुमधुर स्नेह के लिए आभार.
प्रिय प्राची जी मेरे शब्द आपके दिल तक पंहुचे आपने सराहा मेरी कलम को और क्या चाहिए "भरी बरसात में भी प्यासा था दिल एक बूँद जो तूने पिलादी कसम से मन को भिगो गई" |आभार
आशीष यादव जी तहे दिल से शुक्रिया
सौरभ जी आपकी टिपण्णी सर आँखों पर
राकेश गुप्ता जी आपके शब्द तो दिल तक पंहुच गए आपने मेरे शब्दों को सराहा हार्दिक आभार
इक आह सी निकल जाती है। बहुत खूब।
आपकी कोशिश पर ह्रुदय से बधाइयाँ.
तहे दिल से शुक्रिया आपको ये ग़ज़ल नुमा रचना पसंद आई अलबेला जी बहुत बहुत आभार मेरा लिखना सार्थक हुआ
एक अनदेखी, अनजानी, अलग सी महक फैलाती इस ग़ज़लनुमा रचना में आपने बहुत उम्दा पंक्तियाँ कही हैं राजेश कुमारी जी........
आपकी जय हो........
अश्क तो पलकों में ज़ब्त हो जाते
ये सब हथेली पे क्यूँ लिए हमने ||
___वाह वाह क्या बात है !
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