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मंत्रालय में आग.......भाग डी. के..भाग.......!!!!!!

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आग!
बड़ा ही बहु-आयामी शब्द है ये.
दिल से लेकर मंत्रालय तक इसकी हुकूमत के झंडे लहराते है.
आग मत लगा..
आग लगा दूंगा
पानी में आग लगाना
तन-बदन पे आग लगना
जाने कितने तरीके है आग को जताने के.
रोमांटिक हुये तो गा दिया..दो बदन जल गए प्यार की आग में....
अरे छोडिये हमें प्यार-व्यार के आग पे अपनी कलम नहीं घिसनी.हमें तो मतलब है ..मंत्रालय की आग से!
वैसे भी मंत्रालय कहते ही तन-बदन पे आग लग जाती है.लगे भी क्यों ना.बड़े-बड़े खोखले वादे करने वाले बड़े आराम से इस स्वर्ग में पांच साल के लिये आराम फरमाते है. 
क्या आम जनता के हाय की यही आग है जिसकी ज्वाला में मंत्रालय स्वः हो गया या फिर ये आर एक आदर्श आग थी जिसके साये में नेता-अफसर-बिचौलियों ने अपनी चाँदी काट ली.एक विद्वान साहित्यकार ने तो मंत्रालय को उल्लू से जोड़कर 'मंत्रालय में उल्लू 'तक की रचना कर डाली...तो क्या आग और उल्लू एक ही सिक्के के दो पहलू है!!!
नहीं-नहीं आग उल्लू नहीं हो सकती क्यूँ की आग बड़ी समझ बूझ के लगती है.जब मंत्रालय में रखे पाप के बड़े-बड़े घड़े भरकर ओवर-फ्लो होने लगते है तब ये आग बड़ी समझदार है...अपने आकाओं का इशारा पाते ही भक्क से लग जाती है.
वैसे भी भ्रष्टाचार को हमारे पूर्वजों ने आग ही कहा है और इससे दूर रहने  की नसीहते पानी पी-पी कर दी है.
आज मुंबई में तो दूसरे दिन  दिल्ली मेंमगर तीसरे दिन कोलकाता में लगाने की जरुरत ही नहीं क्यूंकि ममता दीदी के तन-बदन पे वैसे ही पहले राष्ट्रपति-चुनाव के नाम से तो अब टाटा के शिन्ग्नूर मामला जीतने  के नाम पर आग की लपटे सारा हिंदुस्तान देख रहा है.
आग के महत्ता पे जितना भी प्रकाश डाला जाये कम ही है.घर की सिगड़ी से लेकर गरीबों की झुग्गी-झोपड़ियो से लेकर मंत्रालय तक आग ही आग के कसीदे पढ़े जा सकते है.
शहर के किसी मौका-ऐ-खास पे किसी बिल्डर की नज़र गडी तो समझो गरीबो का वो ठिकाना बिल्डर के पैसा कमाने की हवस के आग में जले बिना नहीं रह सकता 
मंत्रालय में सबसे ज्यादा आग से खेला जानेवाला विभाग यानी नगर विकास विभाग!!
इसीलिए आग यहीं लगी   और बाद में पुरे मंत्रालय को अपने चपेट में ले लिया.
एक से एक ज्वलनशील पदार्थ इस विभाग में आपको मिल जायेंगे
एक आग और अन्ना-स्टाइल भ्रष्टाचार की सारी योजना पानी-पानी .
चिल्लाते रहो जंतर-मंतर पे गला फाड़ते रहो.आग लगनी है भ्रष्टाचार की तो वो कण-कण  में लग चुकी है.
मंत्रालय की आग तो दूर से दिखती है मगर लोगो क़े मन में लगी जिज्ञासा की आग का  क्या.......!!!!!
अब विपक्षियो को मिल गया है मौका आग में घी डालने का
क्या मंत्रालय में यही दल आग लगा सकता हा!!!
एक मौका हमें भी मिलना चाहिए..विपक्षियों का आर्तनाद है ये.
मामले को रफा-दफा करने का आग से अच्छा सोलुशन कोई और हो ही नही सकता
कागजात भी जल कर खाक और संगणकों की हार्ड डिस्क भी
अब सबूत क्या हलवाई की दुकान से लाओगे.
है न जोरदार आइटम
न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी...
'नष्ट हुये आदर्श सब,मिट गए सभी सबूत.
आग लगी मंत्रालय में,पेपर जले अकूत."
---अविनाश बागडे.

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Comment

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Comment by UMASHANKER MISHRA on June 26, 2012 at 12:22am

भाई अविनाश जी  बेहेतरिन व्यंग रचना है

बहुत कुछ कह दिया आपने

अब समझना हमें है

'नष्ट हुये आदर्श सब,मिट गए सभी सबूत.
आग लगी मंत्रालय में,पेपर जले अकूत." सार कह दिया
संसद भवन के सामने सांसदों के नाम के लिस्ट लगी थी
किसी मेरे या अलबेला जी जैसा कोई मनोवैज्ञानिक  ने  उसके निचे लिख दिया
"ये सब गधे हैं "
किसी पढ़े लिखे सांसद ने पढ़ लिया बाकि अनपढों को बताया की किसीने
हमें गधा कहा है ..इसके लिए आयोग बैठाया गया जांच कमेटी बैठी
जांच महीनो चली परन्तु यह पता नहीं चल पाया की "ये सब गधे हैं" किसने लिखा
अन्ततः फाईल बंद करने के लिए कुछ ना कुछ टिपण्णी लिखनी थी
सभी सांसदों की राय से "ये सब गधे हैं "पर लिखा गया
"गोपनीयता भंग हुई "और फाइल बंद कर दी गई
 सादर बधाई
Comment by AVINASH S BAGDE on June 25, 2012 at 8:53pm

कुमार गौरव अजीतेन्दु ...aabhar

आशीष यादव...shukriya

Bhawesh Rajpal.....acchha laga

PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA....god knows

arun kumar nigam...dil ko chhoo gaya andaz.

Yogi Saraswat...shabd nahi...

Arun Srivastava...kooda jalta nahi...mantralay me koi safedposh jala!!!!

Albela Khatri...ni:shabd hu

Rekha Joshi....bahut achchha laga..

 

sabhi sudhi-jano ka aabhar....fir ek bar

Comment by Rekha Joshi on June 25, 2012 at 3:03pm

अविनाश जी 

'नष्ट हुये आदर्श सब,मिट गए सभी सबूत.
आग लगी मंत्रालय में,पेपर जले अकूत.",सटीक व्यंग ,बहुत खूब ,
Comment by Albela Khatri on June 25, 2012 at 12:20pm

वाह वाह  अविनाश बागडे जी..........
बहुत कुछ कह  दिया आपने.......

मामले को रफा-दफा करने का आग से अच्छा सोलुशन कोई और हो ही नही सकता
कागजात भी जल कर खाक और संगणकों की हार्ड डिस्क भी
अब सबूत क्या हलवाई की दुकान से लाओगे.
___जय हो !
Comment by Arun Sri on June 25, 2012 at 11:38am

अभी तो पता नही कहाँ कहाँ आग लगनी बाकी है !  काश की संसद में लग जाए ! बहुत कूड़ा हो गया है !

Comment by Yogi Saraswat on June 25, 2012 at 11:15am
है न जोरदार आइटम
न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी...
'नष्ट हुये आदर्श सब,मिट गए सभी सबूत.
आग लगी मंत्रालय में,पेपर जले अकूत."
बहुत सुन्दर और सटीक व्यंग्य लेख !

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on June 24, 2012 at 10:30pm

फूँकने से बुझ गई,

फूँकने से जल गई,

न जाने कैसी आग है,

न जाने क्यों मचल गई.

अविनाश जी, बधाई हो......................

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 24, 2012 at 1:50pm

ये आग कब बुझेगी 

जनता कब तक पिसेगी 

बधाई.

Comment by Bhawesh Rajpal on June 24, 2012 at 1:41pm
जिस दिन जनता के दिल में जागरूकता की आग लग गई , वो इन भ्रष्टों पर भारी पड़ेगी !
गहरे कटाक्ष के लिए बधाई ! 
Comment by आशीष यादव on June 24, 2012 at 1:17pm

वाह, आपने भी कटाक्ष के माध्यम से आग लगा ही दी।
बेहतरीन

कृपया ध्यान दे...

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