For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोहा मुक्तिका: पल पल हो मधुमास... --संजीव 'सलिल'

दोहा मुक्तिका:
पल पल हो मधुमास...
संजीव 'सलिल'
*
आसमान में मेघ ने, फैला रखी कपास.
कहीं-कहीं श्यामल छटा, झलके कहीं उजास..
*
श्याम छटा घन श्याम में, घनश्यामी आभास.
वह नटखट छलिया छिपे, तुरत मिले आ पास..
*
सुमन-सुमन में 'सलिल' को, उसकी मिली सुवास.
जिसे न पाया कभी भी, किंचित कभी उदास..
*
उसकी मृदु मुस्कान से, प्रेरित सफल प्रयास.
कर्म-धर्म का मर्म दे, अधर-अधर को हास.
*
पूछ रहा मन मौन वह, क्यों करता परिहास.
क्यों दे पीड़ा उन्हीं को, जिन्हें मानता खास..
*
मोहन भोग कभी मिले, कभी किये उपवास.
दोनों में जो सम रहे, वह खासों में खास..
*
सज्जन पायें शांति-सुख, दुर्जन पायें त्रास.
मूरत उसकी एक पर, भिन्न-भिन्न अहसास..
*
गौओं के संग विचरता, पद-तल कोमल घास.
सिहर सराहे भाग्य निज,  पल-लप हो मधुमास..
*
कभी अधर पर मुरलिया, कभी सरस मृदु हास.
'सलिल' अधर पर धर नहीं, कभी सत्य-उपहास..
*** 

Views: 475

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 7, 2012 at 10:57am

bahut saargarvit rachna sir ji saadhuwaad sahit nama aapko ..............

Comment by AVINASH S BAGDE on June 7, 2012 at 10:42am

श्याम छटा घन श्याम में, घनश्यामी आभास.

वह नटखट छलिया छिपे, तुरत मिले आ पास..

उसकी मृदु मुस्कान से, प्रेरित सफल प्रयास.
कर्म-धर्म का मर्म दे, अधर-अधर को हास.....bahut umda Saleel ji.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 6, 2012 at 4:28pm

बहुत सुन्दर भक्ति भाव से परिपूर्ण दोहावली बहुत बधाई 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 6, 2012 at 1:34pm

बहुत सुन्दर रचना सर जी, केवल आनंद लिया जा सकता है शब्द नहीं बखान हेतु. बधाई.

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 6, 2012 at 12:43pm

सलिल जी सादर नमस्कार !सुंदर साहित्यिक दोहे जो आम जीवन की सच्चाई बयान कर रहे हैं। इस सुंदर प्रशतुति ने मन मोह लिया। बार बार पढ़ने की इच्छा हो रही है। आपको बहुत बहुत बधाई इस सुंदर रचना के लिए !!

Comment by Albela Khatri on June 6, 2012 at 10:26am

धन्य हो  सलिल जी,
वाह वाह  क्या अनुपम दोहे कहे हैं...मन में आनन्द की  सुवास प्रसर गई.

विशेषकर इन दोहों  में मुझे  आत्मिक  सन्तोष हुआ :
पूछ रहा मन मौन वह, क्यों करता परिहास.
क्यों दे पीड़ा उन्हीं को, जिन्हें मानता खास..
*
मोहन भोग कभी मिले, कभी किये उपवास.
दोनों में जो सम रहे, वह खासों में खास..
*
सज्जन पायें शांति-सुख, दुर्जन पायें त्रास.
मूरत उसकी एक पर, भिन्न-भिन्न अहसास

जय हो

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
55 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service