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तेरी निगाह की जादूगरी मैं कैसे लिखूं

तेरी निगाह की जादूगरी मैं कैसे लिखूं
दिखी तराश जो हुश्ने-परी मैं कैसे लिखूं

यहाँ 'न' दिल बिका पामाल का चाहत के लिये
दिवानगी लगी सौदागरी मैं कैसे लिखूं

न कायनात सी दिलकश यहाँ पे शै है को
खुदा बता तेरी कारीगरी मैं कैसे लिखूं

न तोड़ आइना झूठा कभी ये होगा नहीं
बड़ी कमाल है शीशागरी मैं कैसे लिखूं

कभी न तुम  रोना "दीप" जिसने वादा लिया
गजाल सी वही आँखें भरी मैं कैसे लिखूं

संदीप पटेल "दीप'

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 31, 2012 at 9:51pm

bahut bahut shukriya aapka @yogi saraswat ji ....................aapka saadar aabhar


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Comment by rajesh kumari on May 31, 2012 at 4:56pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है संदीप कुमार जी 

Comment by Yogi Saraswat on May 31, 2012 at 4:27pm

न कायनात सी दिलकश यहाँ पे शै है को
खुदा बता तेरी कारीगरी मैं कैसे लिखूं

बहुत सुन्दर ग़ज़ल , श्री संदीप पटेल जी ! एक एक अश'आर बहुत खूब  !

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 31, 2012 at 3:15pm

आदरणीय अलबेला  सर जी
मेरा मनोबल बढाने के लिए
आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार

सादर वन्दे

Comment by Albela Khatri on May 31, 2012 at 12:38pm

waah Sandeep Patel ji,

bahut khoob !

badhaai

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