हां भीड़ में शामिल
मैं भी तो हूँ
रोज
अलसुबह उठ के
जाती हूँ
शाम को आती हूँ
दूर से देखती हूँ
कहती हूँ
ओह देखो तो जरा
कितनी भीड़ है
और फिर
मैं भी भीड़ हो जाती हूँ
Comment
आभारी हूँ संदीप जी
आदरणीय अजय जी.. सही कहा आपने ये सुखद संयोग ही था दो रचनाये एक ही विषय पे आ गयी .. धन्यवाद आपका :)
bahut khoob kaha aapne
मैं भी भीड़ हो जाती हूँ......bahut umda
Bhaut hi sundar rachna Mahima ji, yah ek sukhad sanyog hi raha ki ek hi vishay par maine bhi likha aur aapne bhi... :)
मैं भी भीड़ हो जाती हूँ
हम तो एक बूँद हैं सागर की सागर में मिले तो सागर बन गए .....उसी तरह भीड़ बन गए ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
कहती हूँ
ओह देखो तो जरा
कितनी भीड़ है
और फिर
मैं भी भीड़ हो जाती हूँ....bheed ka sateek mulyankan Maheema ji...
वाह व्यष्टि का समष्टि में और समष्टि का व्यष्टि में रचना-बसना मुखर होकर उभरा है. इस सोच और भाव-दशा के लिये हार्दिक धन्यवाद.
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