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काश
कि उसी वक्त देख लेता
पलट कर पन्ने
उस किताब के ,
जो तुमने वापस कर दी
भीगी आँखों के साथ !
और मैंने उसे इंकार समझा
अपने प्रणय निवेदन का !
.
और जब आज
हम दोनों ने थाम रखे है
दो अलग अलग सिरे
जिंदगी के !
तो अनायास ही
हाथों में आई वो किताब !
थरथरा गया अस्तित्व !
जैसे कोई रेल गुज़री हो
किसी पुराने पुल से !
बिखर गए किताब के पन्ने !
और पन्नों के बीच
एक सुख चुका गुलाब
जो मैंने नही रखा था !
.
काश
कि उसी वक्त देख लेता
पलट कर पन्ने
उस किताब के !


....................... अरुन श्री !

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Comment

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Comment by Arun Sri on April 19, 2012 at 12:27pm

सौरभ सर , आपकी दृष्टि पड़ी मैं धन्य हुआ !

और इतनी प्रशंसा तो संभालना मुश्किल है ! :)) :))
इस बधाई में आप भी हिस्सेदार हैं ! सादर

Comment by Arun Sri on April 19, 2012 at 12:25pm

रोहित शर्मा जी , कोई बात नही ये सबक दूसरी बार गलती नही करने नही देगा ! :)) :))
बहरहाल आपको धन्यवाद !

Comment by Arun Sri on April 19, 2012 at 12:22pm

प्राची मैम , मेरे एहसास आप तक पहुच सके तो शब्दों में उन्हें बांधना सफल रहा ! आभारी हूँ !

Comment by Arun Sri on April 19, 2012 at 12:21pm

अरुन पाण्डेय सर , आपकी सराहना ने गौरवान्वित किया ! धन्यवाद !

Comment by Arun Sri on April 19, 2012 at 12:20pm

संदीप जी , आपकी सराहना हेतु धन्यवाद !

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 18, 2012 at 11:27pm

kis naye andaj se abhivyakti, badhai.

Comment by MAHIMA SHREE on April 18, 2012 at 5:46pm
अरे वाह !! अरुण जी आप तो चकित कर देते है...
बहुत ही खुबसूरत अभिवयक्ति.......
बहुत-२ बधाई आपको....

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 18, 2012 at 4:10pm

vaah kitne sundar bhaav jab vo ghadi nikal jaati hai bas pachhtaane ke siva kuch bhi nahi rahta kaash us din ek panna palat kar dekh liya hota. 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 17, 2012 at 11:42pm

तो अनायास ही
हाथों में आई वो किताब !
थरथरा गया अस्तित्व !
जैसे कोई रेल गुज़री हो
किसी पुराने पुल से !
बिखर गए किताब के पन्ने !
और पन्नों के बीच
एक सुख चुका गुलाब
जो मैंने नही रखा था !

क्या बात है अरुण जी बचपन के दिन भी क्या दिन थे ...ऐसा भी होता है ...खूबसूरत ...जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 17, 2012 at 11:30pm

अद्भुत ! अद्भुत !!

अरुणजी, आपकी इस कविता को मेरी पढ़ी हुई आपकी सबसे सशक्त कविताओं में से एक समझता हूँ. कथ्य को आपने जिस ढंग से प्रतिरोपित किया है वह कचोटते हृदय की टीस की तीव्रता और बढ़ा जाता है.  बहुत-बहुत बधाई हो.

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