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लघु कथा : हाथी के दांत 

बड़े बाबू आज अपेक्षाकृत कुछ जल्द ही कार्यालय आ गए और सभी सहकर्मियों को रामदीन दफ्तरी के असामयिक निधन की खबर सुना रहे थे. थोड़ी ही देर में सभी सहकर्मियों के साथ साहब के कक्ष में जाकर बड़े बाबू इस दुखद खबर की जानकारी देते है और शोक सभा आयोजित कर कार्यालय आज के लिए बंद करने की घोषणा हो जाती है | सभी कार्यालय कर्मी इस आसमयिक दुःख से व्यथित होकर अपने अपने घर चल पड़ते  है | बड़े बाबू दफ्तर से निकलते ही मोबाइल लगा कर पत्नी से कहते है "सुनो जी तैयार रहना मैं आ रहा हूँ, आज  सिनेमा देखने चलना है"

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Comment by वीनस केसरी on March 22, 2012 at 8:42pm

भाई संदीप जी एक तो आप इतनी सुलझी हुई बात कहते हो और फिर जाने की बात कहते हो...
दिल न तोड़ो यारा
कहीं न जाओ
मतभेद तो आज नहीं कल दूर हो जायेंगे
बस मनभेद न हो 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 22, 2012 at 8:35pm

yahan to har tippani ka postmortam ho raha hai pleeeease ab bas karo.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 22, 2012 at 8:34pm

आदरणीय शाही जी, सौरभ जी, शशिभूषण जी,

आप सभी आदरणीयों से कुछ आग्रह करना चाहता हूँ| सभी मंचों की परिपाटी अलग़-अलग़ होती हैं| परिवेश, प्राथमिकताएँ इत्यादि भी भिन्न होते हैं| कमेन्ट मिटाने के लिए सौरभ जी ने मुझसे नहीं कहा था मुझे एडमिन की ओर से भाषा को संतुलित रखने का निर्देश मिला था मुझे अतः मैंने उन कमेंट्स को हटा दिया जिनके पोस्ट होने के बाद मुझे ऐसा निर्देश मिला था| मेरी भैंस की बात वाली टिप्पणी उनमें से एक थी| मंच के सम्मानित सदस्यों में सौरभ जी और वीनस जी ने कुछ शब्दों पर आपत्ति दर्ज की थी अतः मैंने उन्हें भी हटा दिया था| एक टिप्पणी जो सारे विवाद की जड़ बनी वो मेरा मेरे ब्लॉग पर लौटने से पहले ही किसी और द्वारा हटा दी गयी थी| क्षमा चाहूँगा किन्तु ओ बी ओ की नियमावली में पोस्ट इत्यादि के सम्बन्ध में नियम व शर्तें तो हैं मगर टिप्पणी के बारे में कुछ कहा नहीं गया है| फिर एक टिप्पणी में मैंने कहा था कि मुझे अच्छा नहीं लगेगा यदि आप शर्मिंदा होंगे तो उस पर वीनस जी ने आपत्ति जताई थी तो मैं हैरान था| खैर वह भी हटा दी| एक बात जो मैं कहना चाहूँगा वह यह कि लेखक स्वभाव से भावुक होता है और इसीलिए सृजन करने में सक्षम भी होता है यदि उसी भावावेश में कभी उससे कोई छोटी सी त्रुटि हो जाए तो उसे समझाना तो अवश्य चाहिए किन्तु भावनाओं को भी ध्यान में रखना आवश्यक होता है| उससे कोई ग़लती हो तो उसे विस्तारपूर्वक समझा कर उसकी ग़लती का एहसास कराना चाहिए और सुधार के रास्ते पर ले जाना चाहिए बल्कि यह नहीं कि उसके ऊपर इस तरह के व्यंग्यबाण छोड़े जाएँ कि वह आहत हो जाए| इतने लंबे घटनाक्रम में ऐसा बहुत कुछ हुआ है जो नहीं होना चाहिए था किन्तु पिछली को बिसार कर आगे बढ़ जाने में ही भलाई होती है| इस मंच के अपने नियम क़ायदे और क़ानून हैं जिनका अनुपालन न होने कि स्थिति में कोई भी सदस्य यहाँ से हट सकता है या फिर हटाया जा सकता है| किसी स्थान विशेष की संस्कृति से तारतम्य न बैठा पाना अहितकर ही होता है| ये गुटबाज़ी की बात नहीं है किन्तु वैचारिक मेल होने पर स्वतः ही कुछ आकर्षण हो जाता है| किसी के प्रति स्नेह का भाव हो तो उसके लिए सहानुभूति स्वतः ही उपज जाती है| आदरणीय शाही जी ने अपने विचार रखे उन्हें जैसा लगा ठीक उसी तरह बिना लागलपेट के| उनके वैचारिक स्तर के आसपास के व्यक्ति विरले ही होंगे| उनकी क्षमताओं पर संदेह वही करेगा जो उनके बारे में जानता न हो और यहाँ भी कुछ ऐसा ही हुआ है| शाही जी बेहद विनम्र और सुलझे हुए विचारों के व्यक्ति हैं और उन्होंने अपनी पिछली टिप्पणी में ही स्पष्ट कर दिया है कि उन्हें जो कहना था वो उनकी भावनाएँ थीं अब उसे तूल न दिया जाए| लोग घी, तेल, अन्य ज्वलनशील वस्तुओं इत्यादि को दोष तो देते हैं मगर वो शरर जिसकी वजह से सारी आग फैली उसे कोई दोष नहीं देता| इस प्रकरण में भी ऐसा ही कुछ हुआ है| जैसे मैं यहाँ के पुराने सदस्यों को नहीं जानता वैसे ही यहाँ के सदस्यगण मुझे भी नहीं जानते स्वाभाविक ही है| हर किसी की अपनी-अपनी ख़ूबी और ख़ामी होती है| कोई कहीं बीस है तो कोई कहीं| कोई किसी विधा में निष्णात हो जाए तो उसे गर्व होना चाहिए गुरुर नहीं| मेरे मंच पर आने के बाद से ही कुछ विषम परिस्थितियां यहाँ घटित होती जा रही हैं और इस मंच के वातावरण को ध्यान में रखते हुए मेरा यहाँ से जाना ही हितकर होगा किन्तु मेरे कारण किसी भी अन्य सदस्य को ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है| इस तरह के कारणों से ही मैंने पूर्ववर्ती मंच को अलविदा कह दिया था| मेरे कारण किसी स्वस्थ वातावरण का ह्रास होता है तो बेहतर यही होगा कि मैं वहाँ से हट जाऊं| मैंने कुछ ही दिनों में इस मंच से बहुत कुछ सीखा है और इसके लिए मंच को विशेष आभार भी देता हूँ| 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 22, 2012 at 8:01pm

’चारण’ शब्द पर आपकी कड़ी आपत्ति मुझे आशान्वित कर रही है, आदरणीय शशिभूषणजी.

मेरे अधोलिखित प्रश्नों के बौछार से आने वाले कल अंदाज़ा होना आपकी सकारात्मक सोच का परिचायक है.

आप द्वारा ’मैं पुनः अपने प्रश्नों पर विचार करूँ’ का आदेश मुझे उन सभी प्रश्नों पर आपका का उत्तर दीख रहा है, जिसका उद्घोष और जिसकी अनुगूँज ’नहीं’ के रूप में  मुझ तक आ रही है.

आपका स्वागत है.

सादर

Comment by Dr. Shashibhushan on March 22, 2012 at 7:54pm

आदरणीय महोदय !
आपके इन अजीब से प्रश्नों की बौछार से आनेवाले कल
का कुछ-कुछ अंदाजा हो रहा है ! आपके द्वारा प्रयुक्त
"चारण" शब्द और उसके पीछे छिपे भाव पर मुझे
कड़ी आपत्ति है ! आप अपनी बातों पर, अपने प्रश्नों
पर पुनः विचार करियेगा !
मुझे अपनी भूल पर खेद है !
क्षमाप्रार्थना के साथ !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 22, 2012 at 7:26pm

आदरणीय शशिभूषणजी, 

आपका आशय रचनाधर्म है और रचनाकर्म है तो आपका सहर्ष स्वागत है.
आप रचना को कोरा भावुक संप्रेषण के अलावे भी कुछ समझते हैं तो आपका स्वागत है.
आप उक्त थ्रेड पर सभी टिप्पणियों को पढ़ने के बाद संयत भाव से विचार व्यक्त कर रहे हैं तो आपका स्वागत है.
आपको लगता है कि आपके रचनाकर्म को मात्र चारण नहीं स्वस्थ दिशा चाहिये तो आपका स्वागत है.
आप सिर्फ़ सुनाने नहीं, कायदे से सुनने में भी विश्वास करते हैं तो आपका स्वागत है.
आप टिप्पणियों के नाम पर बिना तथ्य की वाही-तबाही बकने को साधिकार नकारते हैं तो आपका स्वागत है.
आप तथाकथित गुटबंदी के संकुचित दायरे से बाहर निकल कर, जहाँ वाकई चिरायंध गंध है, जिसका आपने जिक्र किया है, स्वतंत्र, उन्मुक्त और व्यावहारिक सोच रखते हैं तो आपका स्वागत है.

अन्यथा, आप स्वयं निर्णय करें. आप प्रबुद्ध हैं. विचार थोपे नहीं जाते, तो उन्नत विचार अतुकांत और सतही भी नहीं होते.

 

सादर

Comment by Dr. Shashibhushan on March 22, 2012 at 6:34pm

आदरणीय प्रबंधक जी एवं मंच के सभी प्रबुद्धजन !
सादर !
मैं इस पर इसलिए आया कि अन्य मंचों की अपेक्षा यहाँ का वातावरण
कुछ विशेष साहित्यिक लगा ! आप सभी प्रबुद्धजनों का सहयोग और
सद्भाव कुछ करने की प्रेरणा देता लगा ! परन्तु लग रहा है कि वह मेरी
भूल थी ! प्रज्ज्वलित अग्नि में पानी डालने से उसकी ज्वाला शान्त होती
है, पर घी के छींटे उसे और उत्तेजित करते हैं ! मुझे लग रहा है कुछ लोग
यहाँ घी के छींटे भी दे रहे हैं ! आदरणीय शाही जी और आदरणीय वाहिद
जी के ब्लॉग पर एवं इस ब्लॉग पर दर्शित प्रतिक्रियाएं चिरायन गंध दे रही
हैं और यहाँ से दूर हटने को प्रेरित कर रही हैं !
बेशक आपका मंच एक स्वस्थ साहित्यिक वातावरण वाला मंच है, पर
कलहपूर्ण स्थितियों में निर्दोष रचनाधर्मिता निभाना बहुत मुश्किल होता
है ! ऐसी स्थितियां आज उनके साथ है, कल किसी और के साथ भी हो
सकती हैं ! ऐसी परिस्थितियाँ निराश करती हैं और पुनर्विचार पर विवश
करती हैं !
सादर आभार !

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 22, 2012 at 5:53pm

सभी बरिष्ठ लोगो एवं मित्रो को मेरा सदर नमस्कार. यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव रहा है की, इस मंच पर मै भी नवागंतुक ही हूँ, किन्तु मेरे साथ कभी भी भेद भाव या मुझे घेरने की कोशिश नहीं की गई, और जिस प्रकार की साहित्यिक परक और मीठे शब्दों में मेरी कमियां बताई गई हैं, वह अन्यत्र दुर्लभ है. मुझे तो इससे पहले सारे गुरु यहाँ से बहुत बहुत बहुत ज्यादा कठोर मिले हैं, क्रोधित मिले हैं. किन्तु वे चाहे सौरभ जी हो, वीनस जी हों, या अभी हाल में दोहों के लिए प्रेरित करते श्री रघुविन्द्र यादव जी, सभी विनोद प्रिय एवं साहित्य के महारथी ही लगे हैं. और जिस तरह से सहज लहजे में 'न की डंडा मार' तरीके से मेरी कमियां बताई हैं, वह उधृत करने योग्य हैं.
और किसी को क्या 'title' रखना चाहिए, ये लेखक पर ही छोड़ देना उचित होगा, क्योन्कि लेखक ने जिस मूड में ये लिखा है, उसमे कुछ फेर बदल करना रचना के साथ  अन्याय है. और किसी को किस शैली में रचना लिखनी चाहिए या नहीं यह भी लेखक पर ही छोड़ दें, अगर हो सके तो बस मदद करने की कोशिश करें, न की यह कहें की "यह शैली आप पर सुइट नहीं करती".
बाकी आनंद भाई ने बता ही दिया है की ज्यादा बोलने वाला मूर्ख होता है, इसलिए मै अपनी मूर्खता को यहीं तक सीमित रखता हूँ, आप लोगो न को पुनः सादर नमस्कार.

Comment by वीनस केसरी on March 22, 2012 at 5:35pm

प्रतीक्षा है कि शाही जी बता दें की उन्होंने कितने शतक जमाये हैं तो उन्हें भी सलामी ठोंकूं

Comment by वीनस केसरी on March 22, 2012 at 5:34pm

आनंद भाई की शतकीत पारी को सलाम कर रहा हूँ ....:)

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