For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


ब्रज मां होली खेले मुरारी अवध मां रघुराई

मेरा संदेसा पिया को दे जो जाने पीर पराई

 

 

कोयल को अमराई मिली कीटों को उपवन

मैं अभागिन ऐसी रही आया न मेरा साजन

 

लाल पहनू , नीली पहनू,  हरी हो  या वसंती

पुष्पों की माला भी तन मन शूल ऐसे  चुभती

 

 

सूनी गलियां सूना  उपवन सूना सूना संसार है

मैं बिरहिन यहाँ तड़फूं कैसा तेरा ये  प्यार है

 

प्रियतम भेजी कितनी पाती तेरी याद सताती है 

मैं तो दूजे  घर  की बेटी माटी की याद न आती है 

 

अब तो आजा बिखर चुकी हूँ लगता सब बेकार है

अब न आया तो फिर न मिलूंगी जीवन धिक्कार है

प्रदीप  कुमार सिंह कुशवाहा  

 

Views: 690

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 15, 2012 at 11:02am

snehi संदीप  ji. सादर abhivadan

aapko pasand aaya. is hetu aap ko badhai. 
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 15, 2012 at 11:00am

snehi rakesh  ji. शुभाशीष. 

aapko pasand aaya. is hetu aap ko badhai. 
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 15, 2012 at 10:59am

snehi  mahima ji. शुभाशीष. 

aapko pasand aaya. is hetu aap ko badhai. 
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 15, 2012 at 5:59am
अब तो आजा बिखर चुकी हूँ ....... 
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 15, 2012 at 5:58am
अब तो आजा बिखर चुकी हूँ ....... 

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 14, 2012 at 2:23pm

सूनी गलियां सूना  उपवन सूना सूना संसार है

मैं बिरहिन यहाँ  तडपू कैसा तेरा ये  प्यार है   


बहुत खूब आदरणीय प्रदीप जी, अच्छी रचना , नायिका की बिरह बेदना को आपने स्वर दे दिया है, बधाई स्वीकार करें ।



Comment by Abhinav Arun on March 14, 2012 at 1:50pm

आदरणीय श्री प्रदीप जी बहुत सरल सहज अंदाज़ में मन की कहती रचना | सही है एक बिरहन से ही पूछिये इन मौसमों त्योहारों में क्या गुज़रती है -

सूनी गलियां सूना  उपवन सूना सूना संसार है

मैं बिरहिन यहाँ तड़फूं कैसा तेरा ये  प्यार है

इस "तड़फूं"का जवाब नहीं !! वाह !!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 14, 2012 at 12:23pm

होली और विरह को लेकर बहुत सी रचनाएँ लिखी जा चुकी हैं किन्तु आपकी इस रचना में एक नयापन झलक रहा है| राकेश जी की बातों से मैं भी सहमत हूँ| बधाई स्वीकार करें आदरणीय प्रदीप जी|

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 14, 2012 at 10:31am

आदरणीय प्रदीप जी, सादर नमस्कार. बहुत खूब, आपने कई लोगो की विरह वेदना को छदो मे पिरो दिया है, बधाई बधाई.

Comment by MAHIMA SHREE on March 14, 2012 at 10:21am
अब तो आजा बिखर चुकी हूँ लगता सब बेकार है
अब न आया तो फिर न मिलूंगी जीवन धिक्कार है

आदरणीय सर ,
प्रणाम ...विरह की सुंदर अभिवयक्ति .....बधाई स्वीकार करे...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service