For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नज़्म - निमिष भर को उथल है !

नज़्म - निमिष भर को उथल है !

 

सफ़र कटने में अंदेशा नहीं है

मगर सोचा हुआ होता नहीं है

कई लोगों को छूकर जी चुका हूँ

नहीं अफ़सोस कि अब भी रुका हूँ

मुबारक हो उन्हें जो बढ़ गए हैं

हजारों सीढियां जो चढ़ गए हैं

नज़र उनको खुदा ऐसी अता कर

उन्हें भी रास्ता दें और बता कर

जो सांचों से परे ढलते नहीं हैं

कभी जो लीक पर चलते नहीं हैं

हाँ उनका  निर्मिती में हक़ तो होगा

कभी जो अपने मुंह कहते नहीं हैं

यकीनन मांद में रहते नहीं हैं

मगर उनकी ज़बां खामोश रहकर

बहुत कुछ कह रही है और सहकर

जो अपने ही बदन को बींध कर भी

कभी सूली तलक पहुंचे नहीं हैं

नहीं उत्सव कभी होता है उनका

जो खेतों और खलिहानों में रहकर

किताबों की मचानों से उतरकर

सतह पर रेंगने भर को हैं आतुर

कई अजगर यहाँ मुंह बाए बैठे

हजारों बार सांसें भर रहे हैं

कई अल्फ़ाज़ पल पल मर रहे हैं

ये जंगल और वीराना हुआ सा

नदी पथरीली में कैसी उदासी

ये कंकर की सदा कैसी ज़रासी

हमारे कानों को छूकर  के गुज़री

निमिष भर को उथल है

है पर्वत और जल है

कोई रस्ते की खातिर टूटता सा

उसूलों के भंवर में छूटता सा

कोई अपनी ऊंचाई और परचम

का दम भरते हुए ठहरा हुआ है

कि जिसके नाम का पहरा हुआ है

उसी के वास्ते और उसकी खातिर

खुदारा दिल मेरा  करता दुआ है .

 

                - अभिनव अरुण

                    (12032012)

 

 

Views: 700

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on March 14, 2012 at 1:27pm
इस रचना को आप सबने सराहा हार्दिक आभारी हूँ , आदरणीय श्री अविनाश जी ,कवि राज जी , आदरणीया राजेश कुमारी जी ,महिमा श्री जी , और श्री अरुण श्रीवास्तव जी !! स्नेह और प्रोत्साहन बना रहे इससे रचना प्रक्रिया को संबल मिलता है !
Comment by AVINASH S BAGDE on March 13, 2012 at 8:58pm

जो सांचों से परे ढलते नहीं हैं

कभी जो लीक पर चलते नहीं हैं

हाँ उनका  निर्मिती में हक़ तो होगा...zarur...

कभी जो अपने मुंह कहते नहीं हैं


कोई अपनी ऊंचाई और परचम

का दम भरते हुए ठहरा हुआ है

कि जिसके नाम का पहरा हुआ है

उसी के वास्ते और उसकी खातिर

खुदारा दिल मेरा  करता दुआ है ....kya bat hai Arun bhai...bahut kuchh kahati hui nazm...wah!


Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 13, 2012 at 6:25pm

वाह,गज़ब,कमाल,बॆजॊड़,और भी क्या-क्या कह दूं,

मगर,यॆ सारे शब्द  कम पड़ रहे हैं तारीफ़ कॆ लियॆ ॥

 

,,,,,,,,,,,,,,बधाई,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 13, 2012 at 3:00pm

अद्दभुत अतिउत्तम ,बहुत सुन्दर जितनी तारीफ की जाए कम होगी ....बधाई इस अप्रतिम रचना के लिए

जो खेतों और खलिहानों में रहकर

किताबों की मचानों से उतरकर

सतह पर रेंगने भर को हैं आतुर

कई अजगर यहाँ मुंह बाए बैठे

हजारों बार सांसें भर रहे हैं

कई अल्फ़ाज़ पल पल मर रहे हैं........बहुत कुछ कहते हुए अल्फाज

 

Comment by MAHIMA SHREE on March 13, 2012 at 2:29pm
आदरणीय अरुण जी....
आपकी रचनाये बार बार पढने को मजबूर कर देती है.....आपकी रचनाओं के शब्द विन्याश ....क्या कहने है......जो सांचों से परे ढलते नहीं हैं
कभी जो लीक पर चलते नहीं हैं.... .साभार
Comment by Arun Sri on March 13, 2012 at 1:58pm

इस रचना की प्रशंसा तो लगता है मेरे बस की बात नही ! जो भी लिखूंगा सूर्य को दीप दिखने के मानिंद होगा !

इतना कहूँगा की  इसे पढ़ना मेरा सौभाग्य हुआ ! प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद !

Comment by Abhinav Arun on March 13, 2012 at 1:39pm
Param adarniy Shriman Sampadak Mahoday aur Shri SAURABH ji ! is rachna par apke utsahvardhak vicharon ke liye HARDIK roop se abhaar prakat karta hoon.Sahity ke mool me hi SAHIT bhaav hai aur ap sabke sanidhy me srijan yatra chalti rahe yahi kamna hai.Agrajon ke Sneh se abhibhoot.sadar-arun.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 13, 2012 at 1:16pm

नींव के किसी पत्थर, प्रवाह की अंतर्धारा या फिर ज्वाजल्यमान कंगूरे के सोपान का पहला पायदान.. . इन संज्ञाओं को अक्सर प्रकाशमान शब्द नहीं मिलते. भाई अभिनव जी ने जिस संवेदना के साथ मूक भावनाओं को शब्द दिया है और जिस मनोहारी शिल्प में बाँधा है वह न केवल आह्लादकारी है बल्कि प्रस्तुत रचना की कहन को ऊँचाइयाँ दे जाता है.  भाव-शब्दों को प्रवाहमय किन्तु उन्मुक्त लिहाज में बाँधना, रचनाकार के लिये कसौटी हुआ करती है. इस कसौटी को जिस शालीनता से कवि स्वीकार कर निरंतर सफल होता जाता है वह अभिभूत करता है.

भाई अरुण अभिनवजी,  इस उत्तम रचना की भावात्मक गहराई और इसके इंगित पर हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाइयाँ.. .


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 13, 2012 at 12:05pm

वाह वाह आदरनीय अरुण भी जी, क्या प्रवाह है आपकी इस रचना में. ऐसी सारगर्भित अभिव्यक्ति पढ़कर मन प्रसन्न हो गया, बधाई स्वीकार करें.

Comment by Abhinav Arun on March 13, 2012 at 10:24am

रचना पर प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार shri प्रदीप जी !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुइ है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"शुक्रिया ऋचा जी। बेशक़ अमित जी की सलाह उपयोगी होती है।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"बहुत शुक्रिया अमित भाई। वाक़ई बहुत मेहनत और वक़्त लगाते हो आप हर ग़ज़ल पर। आप का प्रयास और निश्चय…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service