विकल्पों की इस दुनियां में
बेरस से इस जहां में
तुम्ही कहो क्यों ढूँढूँ विकल्प तुम्हारा
तुम ही तो वो लम्हा हो
जिसे जीया है मैने
तुम्हारी ही सॉसों के बिगङते तरन्नुम को
तो गीतों में पिरोया है मैंने
तुम्ही पर छोङ रखी है हर ख्वाहिश
एक ही तो है सपना,जिसे तुम्हारी ही
आंखों से देख रखा है मैने
तुम्हारे ही हर लफ्ज को कैद रखा है दिल में,
जिसे तुम्हारा ही आशियां बनाया है मैने
तुमसे ही तो खुशियों-गमों का रिश्ता है
जिसे अपने ही चेहरे के डूबते-उबरते भावों
में छुपा रखा है मैनें
एक रूहानी एहसास हो तुम,जिससे
रूबरू एक बार ही होती है जिदगी,जिसे
सबसे चुराकर सजा रखा है मैने
तुम्हारी जगह,तुम्हारी कमी,वो रिक्तता
अपूरणीय है,नामुमकिन है उसे भरना
वर्तमान,भूत और भविष्य तक को तो
ये बता रखा है मेंने
अपने दिन रात,अपनी हर सांस का
हिसाब ऱखती हुं तुम्हारी खातिर
अगर पल भर भी भूली,तो बुला लेना पास
अपने, मौत को भी तो समझा रखा है मैने
फिर क्यों ये दुनियां मजबूर करती है मुझे
विकल्प ढूँढने को तुम्हारा
कहती है इकतरफा है ये प्यार मेरा
कैसे और किस किस को समझाऊँ मैं
फिर मेरे लिए क्या ये दुनियां,तुममे ही तो
एक दुनियां बसा रखा है मैने
तुम भी कह डालो ना मुझसे एक बार
सबके आगे,सबके सामने
विकल्पों की इस दुनियां में
बेरस से इस जहां में
क्यों ढूँढूँ विकल्प तुम्हारा
तुम तो अपवाद हो इस जीवन के !
Comment
धन्यवाद राकेश जी
कोशिश करूंगी कि आपलोगों के पैमानों पर खरी उतर पाउं
अपने दिन रात,अपनी हर सांस का
हिसाब ऱखती हुं तुम्हारी खातिर....good one Minu ji...
meenu ji, bahut sundar rachana.
Magar holi ka tyuhaar hai, kuch rangeen likhiye. shubhkamnaaye.
धन्यवाद हरीश जी,आभार
आदरणीय मीनू जी बहुत सुंदर रचना, हार्दिक बधाई
बागी जी,आपकी प्रतिक्रिया पाकर अत्यंत खुशी हुई
मेरा प्रयास जारी रहेगा,आपका आभार
आनंद भाई,हौसलाफजाई के लिए शुक्रिया
कुशवाहा जी, आशीर्वाद बनाए रखें
वाहिद भाई,ये आपके कारण ही संभव हो पाया है,आभार
योगराज जी,हार्दिक आभार
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