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वो ज़हान मेरा नही

वो ज़हान
मेरा नही
जहाँ
तेरी खुशबू
न हो
तेरी यादें न हो
जिक्र न हो
जहाँ तेरा
वो महफिल
मुझे रास आती नही

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Comment

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Comment by rajni chhabra on September 5, 2010 at 11:32pm
jagdishji,subodh ji aur Ganesh ji, aap sb ke dwaraa ki hui sarahna, mujhe aur bhi likhne ke liye prerit kertee hai
Comment by Subodh kumar on September 5, 2010 at 4:09pm
bahut sunder,,,bhabpurn rachna....dhanyabaad

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 5, 2010 at 10:24am
छोटी सी कविता बड़ा सन्देश देती हुई, इस फ्रेम को जैसे देखिये वैसे ही फिट हो जाता है, अच्छी रचना ,
Comment by jagdishtapish on September 5, 2010 at 8:56am
माननीया रजनी जी
कितने कम शब्दों में कितनी बड़ी बात --कह गईं आप
वो जहाँ मेरा नहीं जहाँ तेरी खुश्बू ना हो प्रेम की चरम सीमा -ह्रदय से बधाई आपको ---सादर

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