For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :- कुछ टूट रहा टूटती आवाज़ की तरह

ग़ज़ल :- कुछ टूट रहा टूटती आवाज़ की तरह  
 
कुछ टूट रहा टूटती आवाज़ की तरह  ,
मुझको लगे है ज़िन्दगी मजाज़ की तरह |
 
हर सिम्त तमाशाई तमाशाई खड़े हैं ,
मैं डूब रहा डूबते जहाज़ की तरह |
 
मैं अपने रंजो गम का सबब ढूंढ रहा था ,
तुमको मेरी मुद्रा लगी नमाज की तरह |
 
घर के बुजुर्ग कोने में आंसू बहा रहे ,
सरकार के गोदाम में अनाज की तरह |
 
अन्ना का हश्र देखकर मानेगा न बापू ,
वो दौर न था आज के समाज की तरह |
 
कोयल की कूक में विरह की टेर भी सुने ,
आनंद ले रहे हैं जो खमाज की तरह |
 
बातों  की चाशनी में इरादे छिपे हुए ,
आँखों में उनकी भूख किसी बाज़ की तरह |
 
[जगजीत को सुनते हुए .. उनके जाने के बाद ]
 
     - अभिनव अरुण {10102011}

Views: 488

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shashi Mehra on October 19, 2011 at 7:25pm

मैं अपने रंजो गम का सबब ढूंढ रहा था |
तुमको मेरी मुद्रा लगी नमाज की तरह || achhi fikr hai.

Comment by Abhinav Arun on October 14, 2011 at 6:41pm
adarniy shri Bagi ji ke sneh sikt shabdon ke liye hardik abhaar.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 13, 2011 at 10:00pm

घर के बुजुर्ग कोने में आंसू बहा रहे ,
सरकार के गोदाम में अनाज की तरह |
 
अन्ना का हश्र देखकर मानेगा न बापू ,
वो दौर न था आज के समाज की तरह |

 

भाई अरुण जी एक एक शेर दिल को झंकृत कर रहा है, बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल की प्रस्तुति है, बधाई स्वीकार करे, आदरणीय जगजीत सिंह का जाना एक शुन्य का सृजन कर दिया है जिसको भर पाना मुमकिन नहीं है, ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और परिवारजनों के साथ साथ करोड़ों प्रशंसको को इस आपार दुःख सहन करने की शक्ति भी |

Comment by Abhinav Arun on October 12, 2011 at 2:50pm
Aradhna ji Saurabh Ji & Virendra ji aapne mere pryaas ko saraha Hardik Abhaar !!
Comment by Aradhana on October 12, 2011 at 1:03pm

सुना है पहले भी ऐसे में बुझ गये हैं चिराग

दिलों की खैर मनाओ बड़ी उदास है रात.

बहुत सुंदर श्रधांजलि अरुण जी,

ख़ास कर,

कुछ टूट रहा टूटती आवाज़ की तरह  ,

मुझको लगे है ज़िन्दगी मजाज़ की तरह | 

हर सिम्त तमाशाई तमाशाई खड़े हैं ,

मैं डूब रहा डूबते जहाज़ की तरह |

वाह!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 12, 2011 at 12:55pm

आपकी श्रद्धांजलि में मैं अपने सुर लगाता हूँ और नियंता के फ़ैसले पर नत होता हूँ. ..

हर सिम्त तमाशाई तमाशाई खड़े हैं ,

मैं डूब रहा डूबते जहाज़ की तरह |

मैं अपने रंजो गम का सबब ढूंढ रहा था ,

तुमको मेरी मुद्रा लगी नमाज की तरह |

कुछ ऐसे लोग होते हैं जो चुपचाप अपने-अपने-से पलों का हिस्सा बन जाते हैं और ग़ुमान तक नहीं होता कि बग़ैर उनके ज़माना कैसा होगा.जगजीत सिंह ऐसे ही लोगों में से थे जिन्हों ने हमसब की भावनाओं को स्वर दिया था. आज भावनाएँ कुछ देर सही ख़ामोश हैं.

 

 

हर सिम्त तमाशाई तमाशाई खड़े हैं ,
मैं डूब रहा डूबते जहाज़ की तरह |
 
मैं अपने रंजो गम का सबब ढूंढ रहा था ,
तुमको मेरी मुद्रा लगी नमाज की तरह |
Comment by Veerendra Jain on October 12, 2011 at 11:44am

bahut hi umda..badhai Arun ji...

Comment by Abhinav Arun on October 12, 2011 at 10:23am
सही कहा श्री इमरान जी !! जगजीत की आवाज़ ख़ामोशी में भी शम्मा सी रोशन रहेगी सदा सदा .. 
Comment by इमरान खान on October 12, 2011 at 10:00am

क़लम रुक रही है, बहर खो रही है,
मुसलसल खड़ी ये, गज़ल रो रही है।
अलविदा है शहंशाह ए ग़ज़ल अलविदा.... :(((((((((

(ख़ामोशी खुद अपनी सदा हो, ऐसा भी हो सकता है .. सुनते हुए .. )

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service