For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय योगी जी व आदरणीय सौरभ जी की प्रेरणा से जनित पाँच कह-मुकरियां :


(1)
बड़े प्यार से जो दुलरावै|
हमको अपने गले लगावै|
प्रीति-रीति में हम हों बंदी|
क्यों सखि साजन? नहिं सखि हिंदी!
_________________________


(2)

अलंकार से सज्जित सोहै|
रस की वृष्टि सदा मन मोहै  |
मिल जाता है परमानन्द |
क्यों सखि साजन? नहिं सखि छंद |

__________________________

(3)

परम संतुलित जिसका भार|
गुरु लघु रूप बना आधार!  
जन-जन को है जिसने मोहा|
क्यों सखि साजन? नहिं सखि दोहा!

___________________________

 

(4)

मेल जोल जिसका है गहना|
जैसे लिखना वैसे पढ़ना|
पूरी होती जिससे आशा
क्यों सखि साजन? नहिं निज भाषा!

_____________________________

 

(5)

दुनिया में जो प्रेम बढ़ावै|
जिसका साथ जिया हर्षावै|
राजनीति जिस पर हो गंदी|
क्यों सखि साजन? नहिं सखि हिंदी!
--अम्बरीष श्रीवास्तव

_____________________________

Views: 722

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 14, 2012 at 4:05pm

धन्यवाद अरुण जी, कह -मुकरियों को सराहने के लिए हार्दिक आभार .....सस्नेह 

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 14, 2012 at 3:28pm

भ्राताश्री वाह क्या बात है, अति सुन्दर पाँचों कह-मुकरियां. बधाई हो

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 14, 2012 at 12:34pm

आदरेया सीमा जी,

प्रतिक्रया के माध्यम से आपका जो स्नेहाशीष मिला वह मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है ....आपका हार्दिक आभार आदरेया ...

सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 14, 2012 at 12:32pm

आदरेया प्राची जी,

कह-मुकरियों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार .....आप जैसी विदुषी की सराहना पाकर अपना यह श्रम सार्थक हो गया है|


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 13, 2012 at 4:28pm
आदरणीय अम्बरीश जी,
इन कह-मुकरियों की जितनी प्रशंसा की जाए कम है.
आप छंदों के सिद्धहस्त विद्वान् हैं, ये तो मुझे पता था, पर कह मुकरी जैसी विधा में छंदों का बखान, मातृ भाषा का गौरव और अभिमान, जिस खूबी से आपनें समेटा है, वो अद्भुत है. हार्दिक बधाई स्वीकार करें. सादर.
Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 24, 2011 at 8:25pm

आदरणीय अभिनव जी आपका हार्दिक स्वागत है ! सादर धन्यवाद !!

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 24, 2011 at 8:24pm

आदरणीय बागडे जी आपका हार्दिक स्वागत है ! कृपया धन्यवाद स्वीकार करें !

Comment by Abhinav Arun on October 2, 2011 at 3:16pm

हिंदी की महिमा का बखान करती इन रचनाओं के लिए साधुवाद अम्बरीश जी !! हर कह मुकरी शिल्प और कथ्य के दृष्टि से अनुपम है बहुत बढ़िया !!

Comment by AVINASH S BAGDE on October 1, 2011 at 4:00pm

दुनिया में जो प्रेम बढ़ावै|
जिसका साथ जिया हर्षावै|
राजनीति जिस पर हो गंदी|
क्यों सखि साजन? नहिं सखि हिंदी!.....SUPPPPPPER.

Comment by AVINASH S BAGDE on October 1, 2011 at 3:59pm

अलंकार से सज्जित सोहै|
रस की वृष्टि सदा मन मोहै  |
मिल जाता है परमानन्द |
क्यों सखि साजन? नहिं सखि छंद |......achchha chhand.....kya bat hai..Ambarish ji...saduwad

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service