दोहा पंचक . . .
बातें करते प्यार की, करें न सच्चा प्यार ।
इस स्वार्थी संसार में, सब मतलब के यार ।।
सच्चे- झूठे सब यहाँ, कैसे हो पहचान ।
कई मुखौटों में छिपा,कलियुग का इंसान ।।
सच्चा मन का मीत वो, सच्ची जिसकी प्रीति ।
वो क्या जाने प्रीति जो, सिर्फ निभाये रीत ।।
छलते हैं क्यों आजकल, व्याकुल मन को मीत ।
सिर्फ देह को भोगना, समझें अपनी जीत ।।
कैसे यह अनुबंध हैं, कैसे यह संबंध ।
देह क्षुधा के दौर में, प्रेम हुआ निर्गंध ।।
सुशील सरना / 5-3-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ. भाई सुशील जी, अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।
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