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हैं यूँ ज़िंदगी ने सितम किए, मुझे क्या से क्या है बना दिया
मैं तो आसमाँ के सफ़र में था, मुझे ख़ाक में ही मिला दिया
ये ख़ुशी भी दर्द समेत थी, कि ग़मों के सहरा की रेत थी
जो ख़ुशी ने लाके दिया मुझे, मिरे ग़म ने उसको भी खा दिया
मिरे दिल में दर्द ही दर्द था, कि तमाम उम्र ये सर्द था
लहू सारा दिल ने उड़ेल कर यूँ नज़र के रस्ते गिरा दिया
जो दिल-ओ-जिगर से भी प्यारा था, जिसे अपना कहके पुकारा था
मैं मुड़ा तो मेरी ही पीठ पर छुरा भी उसी ने चला दिया
कभी टूटे दिल का मैं दाग़ था, कभी चटका एक चिराग़ था
कभी आहें मुझको जला गईं, कभी आँधियों ने बुझा दिया
है हज़ार शुक्र कि साथ हैं, ये माँ-बाप रब ही के हाथ हैं
कि जहाँ का प्यार समेट कर है मुझी पे सारा लुटा दिया
जो मरा सड़क पे ग़रीब था, यूँ ख़राब उसका नसीब था
किसी शख़्स ने पड़ी लाश पर न कफ़न भी एक चढ़ा दिया
सभी चीज़ों पर वहाँ सख़्ती है, कोई बोले तो ज़बाँ कटती है
सो ग़ुलामियों से भी पेशतर यहाँ अपना सर ही उड़ा दिया
मुझे ज़िंदगी से मिला है क्या, किया मैंने कोई गिला है क्या
वो जो ज़ख़्म देती रही मुझे, सो क़ुबूल कर के भुला दिया
कभी माँगता नहीं बेसबब, मैं तो कुछ भी 'ज़ैफ़' जहाँ से अब
कि नदामतों के सिवा मुझे कभी इस जहाँ ने है क्या दिया
(मौलिक/अप्रकाशित)
Comment
आ. लश्मण जी। उन शे'रों में गुंजाइश नहीं दिखी तो ग़ज़ल से ख़ारिज कर दिया है। बहुत शुक्रिया, आपका ।
आ. भाई जैफ जी, अभिवादन।गजल का प्रयार अच्छा है। भाई समर जी की बात से सहमत हूँ। हार्दिक बधाई।
बहुत शुक्रिया उस्ताद जी, सुधार की कोशिश करता हूँ। सादर
जनाब ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
'जो ख़ुशी ने लाके दिया मुझे, मिरे ग़म ने उसको भी खा दिया'
इस मिसरे का वाक्य विन्यास ठीक नहीं है देखें ।
'लहू सारा दिल ने उड़ेल कर यूँ नज़र के रस्ते गिरा दिया'
उड़ेल--'उँडेल'
'है हज़ार शुक्र कि साथ हैं, ये माँ-बाप रब ही के हाथ हैं'
इस मिसरे में 'मॉं' शब्द को 1 पर लेना उचित नहीं,देखें ।
'किसी शख़्स ने पड़ी लाश पर न कफ़न भी एक चढ़ा दिया'
इस मिसरे का वाक्य विन्यस ठीक नहीं है, देखें ।
बहुत शुक्रिया आदरणीय, सादर।
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