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२२१/२१२१/२२१/२१२
*

अपनी शरण में लीजिए आकार दीजिए

जीवन को एक दृढ़ नया आधार दीजिए।।
*
व्याख्या गुणों की कीजिए दुर्गुण निथार के
सारे जगत को  मान्य  हो वह सार दीजिए।।
*

पथ से  परोपकार  व  सच  के  न दूर हों

नैतिक बलों की शक्ति का संचार दीजिए।।
*
अच्छा करें तो  हौसला  देना  दुलार कर
करदें गलत तो वक़्त पे फटकार दीजिए।।
*
गुरुकुल बृहद सा गेह है मुझको लगा यही
अनुरूप  घर  के  आप  हमें प्यार दीजिए।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 13, 2022 at 3:27pm

आ. भाई समर जी, पुनः उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए आभार।

Comment by Samar kabeer on September 13, 2022 at 11:05am

भाई लक्ष्मण जी, मेरे कहे को मान देने के लिए धन्यवाद ।

'पथ से परोपकार व सच के न दूर हों'

ये मिसरा ठीक है ।

'अच्छा करें तो हौसला देना दुलार कर
करदें गलत तो वक़्त पे फटकार दीजिए'

ये शे'र ठीक है ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 13, 2022 at 7:34am

आ. भाई समर जी सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद आपकी उपस्थिति से मंच पर फिर रौनक आ गयी है। गजल पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए आभार।

'अपनी शरण में लीजिए आकार दीजिए' --सर्वोत्तम सुझाव है।
//
'भटकें न पथ से सत्य व परमार्थ के कभी'-- इस मिसरे की बह्र चेक करें I //
*इसमें सुधार किया है देखिएगा । कौन सा अधिक उपयुक्त है बताइएगा।
/भटकें परोपकार व पथ से न सत्य के/
//पथ से परोपकार व सच के न दूर हों//

'(देना दुलार अच्छे को बढ़ते रहें नियत
'-- इस शे`र के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, भाव भी स्पष्ट नहीं देखिएगा I )
*इसे इस प्रकार देखें-
//अच्छा करें तो हौसला देना दुलार कर
करदें गलत तो वक्त पे फटकार दीजिए//

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 10, 2022 at 8:45pm

आ. भाई अमीरुददीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार। 

Comment by Samar kabeer on September 9, 2022 at 6:15pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्चा है, बधाई स्वीकार करें  I 

अआपने ग़ज़ल के अरकान ग़लत लिखे हैं, इसके अरकान हैं २२१ २१२१ १२२१ २१२  

'लेकर शरण में आप की आकार दीजिए'--इस निसरे का वाक्य विन्यास ठीक नहीं, उचित लगे तो यूँ कहें :-

'अपनी शरण में लीजिए आकार दीजिए'

'भटकें न पथ से सत्य व परमार्थ के कभी'-- इस मिसरे की बह्र चेक करें I 

'देना दुलार अच्छे को बढ़ते रहें नियत
सुधरे न भूल वक्त पे फटकार दीजिए'-- इस शे`र के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, भाव भी स्पष्ट नहीं देखिएगा I 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 5, 2022 at 8:31pm

जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, शिक्षक दिवस पर अच्छी रचना हुई है, हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

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