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एक मजदूर की भूख

उसके भी
दो आँख /दो कान /एक नाक है
थोड़े अलग है तो उसके हाथ ॥
मेरा हाथ उठाता है कलम
मगर
उसके हाथ उठाते है कुदाल
और इसी कुदाल से
लिख लेता है वह
अनजाने में ही
देश प्रेम की गाथा ॥

मेरी माँ कहती है
भूख लगे तो खा लो
नहीं तो भूख मर जाती है ॥


जब भारत बंद/ बिहार बंद होता है
उसकी भूख मर जाती है
कई बार /बार -बार ॥

ओ ...बंद कराने वाले नेताओ
आर्थिक नाकेबंदी करने वाले नक्सलवादियों
क्या आपकी भी भूख कभी मरी है ?


फिर एक दिन
मैं भी स्वं रो पड़ा
जब उसने कहा
थोड़ी सी सीमेंट दे दो साहब
उसका घोल बना कर पी लूँगा
फिर ख़त्म हो जायेगी
सब दिन के लिए मेरी भूख ॥

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Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on July 25, 2010 at 12:17am
बहुत ही मार्मिक वर्णन किया है आपने बबन भैया एक मजदुर की दर्द का.....पढ़ के ही आँख भर आई....
Comment by Raju on July 20, 2010 at 5:24pm
bahut hi sundar rachna hai........

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 19, 2010 at 9:42am
फिर एक दिन
मैं भी स्वं रो पड़ा
जब उसने कहा
थोड़ी सी सीमेंट दे दो साहब
उसका घोल बना कर पी लूँगा
फिर ख़त्म हो जायेगी
सब दिन के लिए मेरी भूख ॥
बहुत ही मार्मिक वर्णन किया है बब्बन भैया , भारत की समस्याओ के तरफ इशारा करती हुई एक अच्छी रचना,
Comment by baban pandey on July 19, 2010 at 6:37am
ASHISH Yadav ji .....aapko kavita pasad aaye ...aapko sukriya
Comment by आशीष यादव on July 18, 2010 at 9:44pm
वाह वाह, बहुत सुन्दर रचना है बंद के ऊपर. बहुत खूब

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