For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-तुम्हारे प्यार के क़ाबिल

1222 1222 1222 1222

जरा सा मसअला है ये नहीं  तकरार के  क़ाबिल
किनारा हो नहीं सकता कभी मझधार के क़ाबिल

न ये संसार  है मेरे  किसी भी  काम का  हमदम
नहीं हूँ मैं किसी  भी तौर से  संसार के  क़ाबिल

न मेरी  पीर है  ऐसी  जिसे  दिल  में रखे  कोई
न मेरी  भावनायें हैं  किसी  आभार के  क़ाबिल

ये मुमकिन है ज़माने में हंसी तुझसे ज़ियादा हों
सिवा तेरे  नहीं कोई  मेरे  अश'आर के  क़ाबिल

मेरे आँसू तुम्हारी आँखों से बहते तो अच्छा था
मगर ये अश्क़ भी तो हों तेरे रुख़सार के क़ाबिल

न जाने क्यों  बहारें इस  कदर से  रूठ कर  बैठीं
नहीं तो ज़ीस्त थी 'ब्रज' की गुले गुलज़ार के क़ाबिल

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 955

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 5, 2021 at 9:33pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदणीय अमीरुद्दीन जी...सादर

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 4, 2021 at 3:54pm

जनाब बृजेश कुमार ब्रज जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। मुद्दआ पर निलेश जी से सहमत हूँ।

//मेरी पिछली ग़ज़ल में मैंने एक शब्द लिया था मियाद ..जो बहुत ही आम फ़हम व प्रचलित शब्द है लेकिन समर सर ने बताया कि उसे मीआद पढ़ा जाता है..

इस पर उन से व्हाट्स एप्प पर काफी बहस के बाद मैंने उस मिसरे को बदल दिया और मुझे लगता है कि मिसरा पहले से बेहतर हो गया.//

निलेश जी अभी तक आपने ओ बी ओ पर पोस्ट उस ग़ज़ल में मिसरा बदला नहीं है, अभी भी 'मियाद' ही है। देखियेेगा। 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 1, 2021 at 11:57am

वाह...आपका सुझाव बहुत ही खूबसूरत है आदरणीय नीलेश जी

किनारा हो नहीं सकता कभी मझधार के क़ाबिल 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 1, 2021 at 11:43am

आ. बृजेश जी  
जरा सा मसअला है ये नही तकरार के क़ाबिल... तकरार के क़ाबिल नहीं है तो अच्छा ही हुआ न ..क्यूँ कि तक्रार तो मतान्तर से उपजती है 
.
चलो माना नहीं हूँ मैं तुम्हारे प्यार के क़ाबि
किनारा हो नहीं सकता कभी मझधार के क़ाबिल 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 1, 2021 at 11:39am

जी बिल्कुल...आप लोगों की तीखी बहस में भी काफी कुछ सीखने को ही मिलता है।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 1, 2021 at 11:37am

आ. बृजेश जी, 
आप तो आप .. मैं भी अक्सर समर सर के सानिध्य में सीखता हूँ.. कई बार तीखी बहस भी हो जाती है लेकिन यदि उनका पॉइंट वैलिड है तो माँ लेता हूँ..
मेरी पिछली ग़ज़ल में मैंने एक शब्द लिया था मियाद ..जो बहुत ही आम फ़हम व प्रचलित शब्द है लेकिन समर सर ने बताया कि उसे मीआद पढ़ा जाता है..
इस पर उन से व्हाट्स एप्प पर काफी बहस के बाद मैंने उस मिसरे को बदल दिया और मुझे लगता है कि मिसरा पहले से बेहतर हो गया.
इस मंच का और सुधि जनों की तेज़ नज़रों का लाभ जितना लूटा जा सके लूटा जाना चाहिए.
 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 1, 2021 at 11:34am

ऐसे कहता हूँ

जरा सा मसअला है ये नही तकरार के क़ाबिल

चलो माना नहीं हूँ मैं तुम्हारे प्यार के क़ाबिल

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 1, 2021 at 11:31am

उचित है आदरणीय नीलेश जी...ये सच है कि साहित्य में मेरी जानकारी बहुत ही अल्प है...बस कुछ कहना चाहता हूँ सो भावों को शब्दों का रूप देने की कोशिश करता हूँ...इसलिए थोड़ी बहुत जानकारी ओ बी ओ जैसे प्लेटफॉर्म से आप लोगों के सानिध्य में प्राप्त हुई है।और उर्दू शब्दों का ज्ञान तो और भी कम है।जो बोलते हैं उसे ही सही मान लेते हैं।सुधार करने के कोशिश करता हुँ... सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 1, 2021 at 8:38am

आप मुद्द आ का उर्दू रूप देखें ..

مدعا  मीम , दाल , ऐन मिलकर मुद्द और बाद का अलिफ़ आ बना रहे हैं 

दिल मुद्दई'  दीदा  बना मुद्दा-अलैह २२१ २ १२ १ १ २    २ १ २ १२ बोल्ड २१२ मुद्द आ है 

नज़्ज़ारे का मुक़द्दमा फिर रू-ब-कार है

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 1, 2021 at 8:27am

आ. बृजेश जी,

मुद्दआ को आम बोलचाल में मुद्दा ही पढ़ा जाने लगा है लेकिन साहित्य में लिखते समय शुद्ध रूप मुद्दआ लिखना ही श्रेयस्कर होगा.
आप ने फ़ानी साहब का जो शे'र पेश किया है उस की तक्तीअ करें तो पाएँगे कि वहां भी मुद्द आ ए हयात पढ़ा गया है ..
यही हाल शमअ का शमा होने से हुआ है .
ग़ालिब के शे'र को भी पढेंगे तो पाएँगे कि बहर में पढ़ते समय मुद्दआ ही पढ़ा जाता है ..
अत: आश्वस्त रहें कि सहीह शब्द मुद्द आ  ही है और उर्दू में ऐसे ही बरता जाता है .
सादर  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service