2211 2122 1221 1222 12
चाहत में सिवा ही चाहत के क्या क्या न सनम हमको मिला
हर जख्म मिला है दिल को यूँ मरहम न सनम हमको मिला
किस को है पता यहाँ कौन कब हो जाये यूँ ही बे-वफ़ा
हम जान लुटा आये अपनी फिर भी न सनम हमको मिला
ता उम्र लगा रहा इश्क में भी यूँ तो मिलना बिछड़ना
मिलके न जुदा हो पर कोई ऐसा न सनम हमको मिला
थोड़ा तो क़रार आये या रब इस दिल ए बेजार को
थोड़ा भी सुकूँ गो चाहत में आखिर न सनम हमको मिला
कैसे ये कहें हमें मिलके भी तो सनम कुछ ना मिला
टुकड़ों में मिला है सब कुछ प पैहम न सनम हमको मिला...
(मौलिक व अप्रकाशित)
आज़ी तमाम.
Comment
प्रणाम गुरु जी
आज आपने समझाया बहुत अच्छा लगा
सहृदय धन्यवाद
जाने अंजाने हुए मेरे द्वारा अनुचित व्यवहार के लिये मैं बेहद क्षमा प्रार्थी हूँ
जी गुरु जी ये बह्र प्रचलित नहीं है
जनाब आज़ी तमाम जी आदाब, ये बह्र जिस पर आपने ग़ज़ल कही है,प्रचलित बह्र नहीं है ।
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